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________________ मुलाराधना आश्वासा उपदेश निकलता है वह सत्य और हितकारक ही होता है. यह जीवादि पदार्थोंका यथार्थ स्वरूप दिखाता है और प्रत्यक्षादि प्रमाणसे अबाधित है. परंतु ऐसे उपदेशका अनादर करनेवाला जीव मिध्यात्वी होकर अवश्य संसार भ्रमण करेगा ही. 'मिच्छत्तमोहिदमदी, ऐसा माथामें पद है. यहां मिथ्यात्व शब्द उपलक्षणात्मक है. इस शब्दसे असंयम, कषाय और योगोंका भी ग्रहण करना चाहिये. बहुतिव्वदुक्खसलिलं अणतकायप्पवेसपादालं ॥ चदुपरिचट्टावत्तं चदुगदिबहुपट्टणमणत ।। १७६९ ॥ अनेकवुःखपानीये नानायोनिभ्रमाकुले ॥ अनंतकायपाताले विचित्रगतिपत्तने ॥ १८४०॥ विजयोदया-बहुतिब्बदुक्यसलिल बहनि तीत्राणि दुःखानि सलिलानि यस्मिन्संसारमहोदधौ तं । अर्णतकायपवेसपादालं अनंतानां जीवानां कायः शरीरमर्नसकायस्तत्र प्रवेशास्ते पातालसंस्थानीया यस्य तं । अथवा न विद्यते अंतो निश्वयोऽस्यैव जीवस्येदं शरीरमिति यहूनां साधारणत्वात् यस्मिन् काये सोऽनंतः कायोऽस्य जीवस्येत्यचंतकायः । मन्तरेणापि भावप्रत्ययं भावप्रधानो निर्देशः । तेनायमथा अनंतकायत्वस्य प्रषेशः अनंतकायरोश- स प रिवतायतं चत्वारः व्यक्षेत्रकालंभावाख्याः परिचर्ताः आवर्मा यस्मिस्तं चयदिपहु पट्टणं चतम्रो गतयो बहुनि महांति पत्सनानि यस्मिस्तं । भणंत अनंते। मूलारा- अगंतत्यादि अनंतानां जीवानां कायस्तत्र प्रवेशाः पातालानि यस्य । चदुपरिषट्टावत्तं द्रव्यक्षेत्रकालभावपरिवर्तनजलभम ।। यह जीवरूपी नौका संसारसमुद्र में प्रवेश कर उसमें भ्रमण करती है आचार्य संसारसमुद्रका विस्तारसे वर्णन करते हैं अर्थ-संसारसमुद्र नानाविध दुःखरूपी पानीसे भरा हुआ है. अनंतजीवोंके जो शरीर उनमें मवेश करना ये ही यहाँ पाताल है.साधारण जीव अर्थात निगोदी जीवोंका जो निवासस्थान है वह ही इसमें पातालप्रदेश समझना चाहिये.साधारण जीवोंके शरीर को अनंतकाय कहते हैं.यह नाम अन्वर्थक है इसही जीवका यह शरीर है ऐसा निश्चय नहीं कर सकते हैं क्योंकि यह साधारण होनसे अनंत जीवांका आश्रयस्थान पड़ा है.अर्थात् एकही जीवका अथवा अमुक
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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