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________________ मूलाराधना आपातोंसे उठी हुई लहरियोंकी पंक्तिके समान नष्ट हो जाता है. शरीरकी दृढ़ता को बल कहते हैं, आत्माके अदम्य उत्साह को-धैर्य को वीर्य-पराक्रम कहते हैं. आश्वासः हिमणिचओ वि व गिहसयणासणभंडाणि होति अधुवाणि ॥ अरुकित्ती वि अणिच्चा लोए संज्झब्भरागोव ॥ १७२७ ॥ हिमपुंजा इथानित्या भवन्ति स्वजनादयः॥ जंतनां गत्वरी कीर्तिः संध्याश्रीरिव सर्वथा ॥ १७९४ ॥ मूलारा–बेव इव । जसकित्ती यशाकीर्तिः । संझम्भ दिनांतमेघः । अर्थ-बर्फ के समुदायके समान घर, शय्या, आसन, पात्र बगरह पदार्थ नश्वर है. और यशकी प्रसिद्धि भी संध्याकालीन मयके समान नश्वर है. BHASHMIRE स्पष्टोत्तरगाथा किह दा सत्ता कम्मवसत्ता सारदियमेहसरिसमिण ॥ ण मुणंति जगमणिच्च मरणभयसमुत्थिया संता ॥ १७२८ ॥ इदं जगच्छारयवारिदोपमं न जानते नश्वरमंगिनः कथम् ॥ यमेन हंतुं सकलाः पुरस्कृता मृगाधिपनेव मृगा पलीयसा ॥ १७९५॥ इति अध्रुवम् ॥ विजयोदया-किड कथं सावत् । अणि जगंण मुक्ति मादनिस्पं न जानति । के सत्तावी सीदति स्पकतपापथशाप्तासु तासु योनिष्यिति सत्वाः । सारदिगमेघसरिसमिणं शरहतुसमुत्पनं नैकवर्णविचित्र संस्थानजीमूतमालासहवां । मरणभयसमुश्छिदा संता मरणं विषं पूष तमजीवितस्य सरीत्कृतं प्रियवियोगादारकस्य, शोकाशने लवपटलं, अयस्कांतोपलः दुःखलोहाकर्षणे, बंधुश्योपलानां द्राषकमौषधमायतापदामायतनं पयंभूतमरणमयसमुस्थिताःसंतः ॥ पयमनित्यतामशेषवस्तुविषयां ध्येयीकृत्य प्रवर्तते धम्य ध्यान ॥ अदुच ॥ १५५६
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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