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________________ मूलाराधना १९४८ अ अनुवाद अनुप्रेक्षाओंका सविस्तर वर्णन करते हैं- अर्थ - - अधुर, अशरण rare, अन्यत्व, संसार, लोक, अशुचित्व, आस्रव, संवर, निर्जरा, धर्म और बोधि ऐसे बारा अनुप्रेक्षाओं का भी चिंतन करना चाहिए अर्थ - देव, मनुष्य और तिर्यंच सहित यह जगत् फेनके समान नष्ट होता है सब ऋद्धिया भी स्वप्नमें देखे हुए पदार्थोंके समान नष्ट होती हैं. शंका- सर्व लोकका नाश होता है इस कथनसे ही सर्व पदार्थोंकी अनित्यता सिद्ध हो गई अतः ऋद्धि भी लोकान्तभूती हैं उनके नाशका वर्णन करनेकी क्या आवश्यकता थी ? क्यों भेदरूपसे उनका वर्णन किया गया है ? उत्तर—समुदाय जो कि अवयवी हैं उसकी अनित्यता अवयवकी अनित्यता दिखाये बिना अवयवी भूत पदार्थोंकी अनित्यता सुखसे ध्यानमें नहीं आसकती हैं. इस लिये मेदोपन्यास किया है. द्रव्यगतो लोभो महान् प्राणभृतां तन्मूलत्वादिद्रियसुखस्याप्राणानव्ययं त्यजति द्रव्यनिमित्तमतस्तदनित्यतामेव प्रागुपदर्शयति । निस्संगतामात्मनः संपादयितुं ॥ विजून चंचलाई पकाई सञ्चसोक्खाई " जलम्बुदोन्त्र अधुवाणि हुंति सव्वाणि ठाणाणि ॥ १७१७ || दृष्टानि सौख्यानि स्फुरितानीव विद्युताम् ॥ बुदबुदा इव निःशेषा नम्बराः सन्ति गोचराः ।। १७८४ ॥ विजयोदया-पिज्जू लाई विद्युदिनि पानि सन्चोखा सर्वाणि सुखानि अभिमतरूपादिविषय पेचकस्य प्रवस्य सन्निधानादुपजातानि यानि मनः समुत्थानि सर्वेषां वा मानवानां तिरखां दिवि जानां वा सुखानि सुखलंपटतथा जनः शाशतिशत निपातमपि सहते, तानि च नीरभरचिनतसंभारगंभीरधीरारामनीलनीरदोदरपरिस्फुरतडिलतेच, एतेनानित्यतादोषोत्कटनेन सांसारिकपराङ्मुखतोपायो निगदितः । जलयुध्युदोष जलदषुदयम् । अध्युषाणि अधुवाणि होति भवंति । ठाणाणि सव्वाणि सर्वाणि स्थानानि । तिष्ठत्येतेषु जीवा इति स्थानानि । प्रामनगरपतनादीनि ॥ इदं सदीयं स्थानं अत्राह पसामीति माहथा संकल्पं । तानि यनित्यानि नित्यबुद्धया परिगृहीताम विनाशे शशताम्पानयंतीति कथितं ॥ अथवा तिष्ठत्यसिन्स्कृतविचित्र कर्मोदयात्प्राणिन इतद्वत्वं नखांना, गणाचिपति या पतानि स्वानाम्यमित्यानि ॥ माश्वासः ७ १५४८
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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