SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1540
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूलाराधना asre आवासः १५२५ धर्मध्यानके ये क्षमादिक धर्म ही विषय-ध्येय ठहरेंगे. ऐसा होनेपर आज्ञापायविपाकसंस्थान विचयाय धर्म्यम् । यह सूत्र विरुद्ध है ऐसा मानना पड़ेगा क्योंकि इस मूत्र में आज्ञा, अपाय, विपाक और संस्थान ये धर्मध्यानके ध्येय विषय हैं ऐसा कहा है. यदि उत्तम क्षमादि दश धाँसे आत्मा युक्त है और उस आत्मासे यह ध्यान मी अभिन्न है अतः यह ध्यान क्षमादि धर्मोसे युक्त है ऐसा कह सकते हैं. यह आपका भी कहना अनुचित है, क्योंकि शुक्ल ध्यान भी इन धर्मों से क्या अभिन्न नहीं है ? अर्थात् शुक्ल ध्यानको भी धर्मध्यान कहना चाहिये. इस प्रकार शंकाकारका कथन है. अब आचार्य इसका उत्तर देते हैं-- रूढ़ि शब्दोंमें जो क्रिया दिखाकर शब्दार्थ कहत है वह कंवल शब्दव्युत्पत्ति के लिये ही समझना चाहिये। उस रूदिशब्दोंमें वह किया होती ही हैं ऐसा नियम नहीं है. 'आशु गमनादश्वः' अर्थात जो शीघ्र गमन करता है-जाता है उसको अश्व कहते हैं यह अश्व शब्दकी व्युत्पत्ति दिखाने के लिये उसकी निरुक्ति दिखाइ है. परंतु यह अश्व शब्द सोये हुए अथवा खडे हुए घोडेमें भी ब्यबहत्त होता है. बहे वेगसे दौडनेवाले गरुड वगैरे प्राणिओं में इस अश्व शब्दकी प्रवृत्ति नहीं होती है. वैसे इस शुक्लध्यानमें धर्म शब्दकी प्रवृत्ति नही होती हैं धर्मध्यानसे भिम आर्त रोद्रध्यानमें भी इसकी प्रवृत्ति नहीं होती है. प्रश्न-ध्यान किसको कहते हैं ? उत्तर-'उत्तमसंहननस्यैकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानम्' अर्थात् उत्तमसंहननवालेके एकाग्रचितानिरोधको ध्यान कहते हैं. छह संहननों में बनवृषभनाराचसंहनन, बचनाराचसंहनन, और नाराच संहनन इन तीन संहननोंको उत्तम संहनन कहते हैं. इन तीनोंमें से एक संहनन जिसको है ऐसा पुरुष उत्तम संहनन धारक है. वह पुरुष एकाग्रमें चिताका निरोध करता है. इस चिंताके निरोधको भ्यान कहना चाहिये. शंका-चिताके अभावको चितानिरोध कहते हैं. वह एकमुख कैसा होता है तथा वह कर्मके भाव अथवा अभावमें कैसा कारण होता है ? आसध्यान और रौद्रध्यान अशुभकर्मका निमित्त है. धर्मध्यान और शुक्ल ध्यान शुभ कर्मका तथा निर्जराका निमित्त है. उत्तर-यहां निरोष शद्र अभावका वाचक्र नहीं है किंतु रोधका चाचक है जैसे मूत्रविरोध. शंका-जो पदार्थ चंचल है उसका निरोध होता है परंनु चिंताका निरोध कैसे हो सकता है ? उत्तर-कितनेक विद्वान अनेक पदार्थाका आश्रय लेकर चिंता चंचल होती है. उसको एक विषय में स्थिर करनाही चिंतानिरोध है ऐसा कहते हैं. उनको ऐसा FECNOR १९२५
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy