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मूलारापना
आमासा
१३.११
अनुकरण करनेवाला मत्स्य स्वल्प आधारके रसमें लोलुप होकर शीघ्र ही प्राणों का नाश करनेवाली विपत्तीको प्राप्त होता है.
नाना प्रकारके सुगंधित पुष्प समुदायके परागसे व्याप्त हुआ भ्रमर विषवृक्षक पुष्प का सुगंध सूंघकर अपने प्रिय को ममाता है.
पतंग नामक पक्षी दीपकको सवर्ण कलिका समझकर उसपर ग्रहण करनेके लिए झपटता है और अपन माण छोड़ देता है. इस प्रकारसे पतियंच प्राणी दु:खको प्राप्त होते है,
तिरचा दुःख प्रतिपाद्य विषयगगजनितं मनुजगती दर्शयति ।
इदि पंचहि पंच हदा सहरसफरिसगंधरूवेहिं ।। इको कह ण हम्मदि जो सेवदि पंच पंचेहि ॥ १३५४ ॥ सरजए गंधमित्तो घाणिंदियवसगदी विणीदाए । विमपुप्फगंधमग्घाय मदो णिरयं च संपत्तो ।। १५५९ ॥ रूपशब्दरसस्पर्शगंधानां यदि हन्यते ॥ एकैकेन तदा कस्प सौख्यं पंच निषविणाम् ॥ १४०४ ॥ मरवां गंधमित्राख्यो घाणेंद्रियवशं गतः॥
विषप्रसूनमााय विपद्य नरकं गतः॥ १४०५॥ विजयरोदया-साजूए सरय्यां नयां । गंधमित्तो गंधमियो नाम भूपालः । मदो मृतः । घिणीवाप विनीतापुरी पतिः । यानिदियषसगदो प्राणेंद्रियवशंगतः। विसगंधपुप्फमग्घाय विषचूर्णवासितपुष्पमाघ्राय । मदो मृतः । णिरये च संपत्तो नरकं च संप्राप्तः । तीवविषयरामाज्जातेन क्रमभारेण ।
मूलाग-पंच विषयान् । एता श्री विजयो नेच्छति ॥
एवं तिरचा प्रत्येक तीविषयरागहेतुकं दु:ख प्रदर्य मनुष्याणां प्रसिद्धा त्यांनः पंचभिः प्रदर्शयिष्यनादौ गंधासक्तितीव्रताहतमनर्थजातं कथयति