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________________ आभास: मूलाराधना णाणं पि गुणे णासेदि णरम्स इंदियकसायदोसेण ।। अप्पवधाए सत्थं होदि हु कापुरिसहत्थगयं ॥ १३४० ॥ कषायेंद्रियदोषेण ज्ञानं नाशयते गुणं ॥ शस्त्रमात्मविनाशाय किन्न भीरकरास्थितम् ॥ १३८८ ।। विजयोक्या-मानमपि गुणानाशापति मरभ्य इंद्रियकषायपरिणामोसण । आत्मवधाय भति शन कापुरुषहस्तगतं इति । मूलारा- अप्पषधाप स्वघातार्थ ॥ अर्थ-इंद्रिय और कषायोंके दोषैसे मनुष्यका ज्ञान गुणोंका ध्वंस करता है. धैर्यहीन पुरुषके साथमें रहनेवाली तरदार उसका ही नाश करती है. उत्सर गाधार्थः॥ सबहुरसुदो वि अवमाणिज्जदि इंदियकसायदोसेण ।। परमाउधहत्थंपि हु मदयं गिद्धा परिभवति ॥ १३४१ ।। कषायेंद्रियदोषातः शास्त्रज्ञोऽप्यवमन्यते ।। किं प्रेतः शत्रहस्तोऽपि न खगैः परिभूयते ॥ १३८९ ॥ विजयोदया--सुबहुस्सुडोवि गुष्ट बटुश्रुतोऽप्यवमन्यते इंद्रियकवायदोषेण । गृहीतास्त्रमपि नरं मृतं गृहाः परिभवन्ति यथा ॥ मूलारा- अबमाणिजदि अवज्ञाहेतुःक्रियते ॥ अर्थ-- इंद्रिय कषायोंके दोषोंसे बहुश्रुत विद्वानका भी लोक अपमान करते हैं. जिसके हाथमें श्रन है ET ऐसे मरे हुए मनुष्यका गीध पराभव करते हैं. इंदियकसायबसिगो बहुस्सुदो वि चरणे उज्जमदि । पक्खीव छिण्णपक्खो ण उप्पडदि इच्छमाणो वि ॥ १३४२ ॥ १३.१
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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