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________________ RALAsteam मूलासपना आश्वा निदानदाघ पिस्तरत उपवय अनिदानत्ये गुणं व्याच - अणिदाणो य मुणिवरो दंसणणाणचरणं विसोधेदि ।। सो सुन्नमाणघरग तल नजम्मक्खयं कुणइ ॥ १२८३ !! विशोध्य दर्शनशानचारित्रितयं यतिः ॥ निर्निदानो विशुद्धात्मा कर्मणां कुरुते क्षयम् ॥ १३२६ ।। विजयोन्या-अणिवाणो य मुगिवरो अनिदानो यतिवृषमा, दसणणाणचरणं रत्नत्रयं विसोधदि विशोघयति, निदानाभावादनतिचार सम्यग्दर्शनं शुद्ध भवति, सस्मिशिमलं शानं, विशुखकानपुरोग चारित्रं विशुदं भवति, तपसा कम्मकाय कुणदि तपसा कर्माणि निरवशेषाणि वियोजयत्यान्मनः || एवं निदानदोषान्विस्तरेण व्याख्याय संप्रत्यनिदानत्वे गुणं व्याचष्टेमूलारा--विसोधेदि निदानाभावाद्वि निरविचारे सति सम्यक्त्थे, जातायां ज्ञानविशुद्धौ, चारित्रं विशुद्ध संपञ्चेत।। निदानक दोषोंका सविस्तर विवेचन हुआ. निदान नहीं करने में क्या गुण है इनका विवेचन अर्थ-जिन्होंने निदान नहीं किया है ऐसे मुनिराज अपना रत्नत्रय निरतिचार करते हैं. निदानके अभाव से सम्यग्दर्शन निर्मल होता है. निर्मल सम्यग्दर्शन ज्ञानको निर्मल बनाता है. विशुद्ध ज्ञानके साथ पाला गया चारित्र भी निर्मल होजाता है. इस तरहसे निर्मल रत्नत्रयधारक साधु तपश्चरणके द्वारा संपूर्ण कमाको अपने आरमासे अलग करता है. इच्चेबमेदमविचितयदो होज्ज हु णिदाणकरणमदी । एन्वेष परसतो त हु होदि णिदाणकरणमदी ।। १२८४ ॥ पोषानिति सुधीथुद्ध्वा निदानं विवधाति मो जानानो दारुणं मृत्यु को हिमक्षयते विषम् ॥ १३२७ ।। लुपति पातकलोपि चरित्रं सिद्धिसुखं विधुनोति पवित्रम् ॥ देहवतांमुरुदोषनिधानं किं कुशलो न शृणाति निदानम् ।। ११२८॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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