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भूलाराधना
आश्वास
ध्यक्ताव्यक्तमति ज्ञानं बाः ओतुश्च यनयन् ।। स्वामहं याचयिष्यामि झापयिष्यानि किंचन ।। प्रष्टुमिच्छामि किंचिस्वामानेन्यमि च किंचन ।। वालः किमेप वक्तीशि त मैदेधि मन्मनः ।। आयाम्येहि भो भिक्षो ! करोम्यामां तव प्रमो! ॥ किंचियां सजयिष्यामि हुंकरोत्पत्र गौः कुतः ॥
याचन्यादिषु दृष्टांता इत्यमेते प्रदर्शिताः ।। अर्थ संशय वचन या असत्यमृषाका आठया प्रकार है. जैसे यह एंठ है अथवा मनुष्य है इत्यादि इसमें दोनोंमसे एककी सत्यता है और इतरका अभाव है इस वास्ते उभयपना इसमें है.
अनक्षर वचन-चुटकी बजाना, अंगुली से इपारा करना जिसको चुटकी बजानेका संकेत मालूम है उस की अपेक्षा से उसको वह प्रतीतिका निमित्त है और संकत मालूम नहीं है उसको अप्रतीति का निमित्त होती है इस तरह उभयात्मकता इसमें है.
उगमउप्पायणएसणाहिं पिंडमुवधि सेजं च ॥ सोधितस्स य मुणिणो विसुज्झए एसणासमिदी ॥ ११९७ ।।
आहारभुपधि शय्यामुद्गमोत्पादनादिभिः ॥
. विमुक्तं गृह्णतः साधोषणा समितिर्मता ।। १२३५ ।। विजयोदया-उगमउम्पान एसणाहि उद्गमोत्पादनपणादोषरहितं भक्तमुपकरण वसति च गृहत पपणास. मितिर्भवतीति सूत्रार्थः । नशवकालिकढीकायां श्रीविजयावयायां प्रपंचिता उमादिदोषा पति ने प्रतम्यन्ते ।।
एपणासमिति निर्दिशति-- मूलारा-सोधेतरम त्याजयतः । इद्रमादिवोरत्यत्तं पिंडादिक गृहत इनार्थः ।। विमुझदे निर्मला भवति ।। अर्थ-उद्गमदोप, उत्पादनदोष आर एपणादोष इन दोषोंसे रहित जो मुनि उपकरण, आहार और
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