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आश्वास
मूलाराधना
असत्यादि तीन वचनोंका लक्षण कहते हैं
अर्थ--उपर्युक्त सत्य भाषणके विरुद्ध जो भापण उसको असत्य भाषण कहते हैं. असदभिधानमनृतं' ११९३
प्रमादसे प्राणिओंको पीडा होगी ऐसा भाषण बोलना वह असत्यभाषण है ऐसा सूत्रकार कहते हैं, अथवा जिस भाषणासे मिथ्याज्ञान, मिथ्यादर्शन और असंयमकी उत्पत्ति होगी वह भी असत्य भाषा है. जो भाषण अप्रशस्त है अर्थात सज्जनांने जिसको प्रशंसा की नहीं वह असत्य भाषण समझना चाहिय.
जिस भाषणमें सत्यपना और असत्यपना दोनो हैं उसको सत्यमृषा मापपा कहते हैं. सत्य, असत्य और मिश्र भाषणोंसे जो भिन्न है अर्थात् जिसमें सत्यतामी नहीं और असत्यताभी नहीं वह भाषण असत्यमृषा है. जिसका सत्य भी नहीं कह सकते जो असत्यभी नहीं मानी जाती है ऐसी और जिसको मिश्रमी नहीं कहा जाता है एमी भापाको अमात्यमृपा कहना चाहिये
जंग वस्तु सर्वथा नित्य नहीं है, सर्वथा अनित्य नहीं है व सर्वथा नित्यानित्यात्मकभी नहीं है, परंतु उस नित्यानित्यत्व धर्मों का समुच्चय है अर्थात् कथंचिन्नित्यानित्यात्मक है. उसी तरह अमत्यमृपा भाषण समझना चाहिय, सत्य और मृया इन दोनोंका मिश्रणभृत जो भापा उसको सत्यमृषा कहते हैं उसका उदाहरण ऐसा हैघी और खांडसे मिश्रित गायका दूध शोभन है क्या? ऐसा पूछने पर वह शोभन है ऐसा कहना दूधको माधुर्यादि गुणोंकी अपेक्षास सत्य कह सकते हैं और ज्वर बहाने का कारण होगा इसकी अपेक्षासे वह असत्य है, सा नघनकारा तस्याश्च भेदा इयंत इति गाथायनाचष्टे--
आमंतणि आणवणी जायणि संपुच्छणी य पण्णचणी॥
पच्चरखाणी भासा भासा इन्छाणुलोमा य ॥ ११९५ ।। आज्ञापनी संबोधनी प्रच्छनी प्रत्याख्यानी याचनी प्रज्ञापनाच्छानुलोमा सांशयिकी निरक्षरा चेति नवधा सत्यमृषाभाषा मंतम्या ।। १२३४ ॥
विजयोदया-आमंतणी यया वाचा परोऽभिमुखीषियने सा आमंत्रणी । ह देवदत्त इत्यादि अगृहीतसंकतान ND भिमुखीकरोति तेन न मुषा गृहीतागृहीतसंकेतयोः प्रतीतिनिमिसनिमित्तं चेति यात्मकता । स्वाध्यायं करत,
बिरमतासंयमात् इत्यादिका अनुशासनवाणी ची। चोदितायाः क्रियायाः करणमकरणं यापेक्ष्य नैकान्तेन सन्या न
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