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________________ BAHAN मूलाराधना आश्वासः मूलारा-संगपरिमम्गणादी परिहान्धेषणमादिशब्देन च तत्स्वामिबोधतत्स्थानावस्थानगवेषणतत्प्रार्थमतहाभपरितोषतदलाभदैन्यतदानयनसंस्करणरक्षणादीनि । विखेया ब्याक्षेपाश्चित्तव्यासंगाः । अबिग्घेण बच्चति निरंतराय प्रवर्तते ॥ अर्थ-- जो परिग्रहोंसे विरक्त हुआ है. उसको परिग्रहोंको ढूंढने की चिंता नहीं रहती है. जिस परिग्रहको लोक चाहते है उसको इंदनेका प्रयत्न करते हैं. किसके पास मेरी अभिलषित वस्तु मिलगी? क्या तेरे पास मेरी इए वस्तु है ऐसा प्रश्न करते हैं. उस वस्तुका स्वामी कहाँ रहता है इसकी खोज करते हैं. उसके पास जाकर याचना करते हैं. इष्ट वस्तु मिलने पर मन आनंदित होता है. परंतु नहीं मिलनेपर दीनता उत्पन्न होती है. अभीष्ट चीजको लाकर उसको सुंदर बनाकर रक्षण करते हैं. परंतु जो निष्परिग्रही हुएई ऐसे मनुष्य इन सर्व झंझटोंसे दूर होकर सुखी होते हैं. निष्परिग्रही मनुष्यों का मन अव्याकुल रहता है जिससे उनके ध्यानाध्ययन कार्य निर्वित सिद्ध होते हैं. सर्व तपामें ध्यान स्वाध्याय ये प्रधान हैं. यह निष्परिग्रहता उनकी माप्ति का उपाय हैं ऐसा अभिप्राय इस गाथास व्यक होता है. गंथच्चाएण पुणो भावविसुद्धी वि दीबिदा होई ॥ ण हु संगघडिदबुद्धी संगे जहिंदुं कुणदि बुद्धी ॥ ११७४ ।। दर्शितास्ति मनःशुद्रिः संगत्यागेन तात्विकी॥ संगासक्तमना जातु संगत्याग करोति किम् ।। १२१२ ।। विजयोदया-संगच्चापण पुणो संगत्यागेन पुनः । भाव विमुखी वि दीविदा होदि परिणामस्य विशुचिपिता दर्शिता भवति। ण हुसंगडिदबुद्धी नैव परिग्रहटिनबुद्धिः । संगे जहिदु कुणदि बुद्धी परिग्रहांस्त्यक्तुं करोति दुई । भायधिशुद्धेरपि सम्यं लिंगमित्याहमूलारा-दीचिढ़ा दर्शिता ॥ अर्थ-परिग्रहोंका त्याग करनेसे परिणाम निर्मल होते है और प्रतिदिन परिणामोंकी निर्मलता बढती ही । रखती है. परिग्रहोंने जिसका मन लुन्ध हुआ है वह मनुष्य परिग्रहोंका त्याग करने में असमर्थ हो जाता है.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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