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________________ मूलाराधना मावासा अमीभिरखिलौषग्रंथस्यागी विमुच्यते ॥ भूरिभिस्तद्विपक्षश्च निलयीक्रियते गुणैः ॥ १२०५ 11 विजयोदया-पदेसि दोसाणं मुंचा पूर्वोक्तान्एरिप्रहग्रहणगतान्दोषान्योषांस्यजेदिति दोषप्रतिपक्षभूताम्गुणानपि लमते॥ प्रयत्यागिनो दोषविच्छेवं गुणप्रविलभ चोपविशतिमूलारा-मुंचदि पूर्वोक्तान्दोघांस्त्यजति । द्वितीयार्थेऽत्र षष्ठी ।। अर्थ-परिग्रहका त्याग से पू र्वजोका स्याबहो जाता है. और इन दोषोंके प्रतिपक्षी औदार्य, निस्पृहता वगैरह गुणोंकी प्राप्ति होती है. राम्॥ गंथच्चाओ इंदियणिवारणे अंकुसो व हत्थिरस ॥ णयरस्स खाइया विय इंदियगुची असंगतं ॥ ११३८ ॥ अंकुशो गतसंगत्वं विषयेभनिवारणम् ॥ इंद्रियाणां परा गुप्तिःपुरीणामिव स्वातिका ॥ १२०६ ।। विजयोदया-थवाओ ग्रंथत्यागः इंद्रियनिवारणे इत्यामंद्रियशब्द उपयोगेंद्रियविषयः सप्तमी निमि. तलक्षणा । नेनायमर्थः-इंद्रियशानस्य रागद्वेषमूलस्य निवारणे निमित्तभूतोऽकुश व हस्तिनो निवारणे उत्पथयानात् । नगरस्स खादिगा घि य नगरस्य सातिका इव । असंगतं निश्परिग्रहता। हदियगुत्ती इंद्रियगुप्तिारद्रियरक्षा रामोत्पत्ति निमित्तेदियशानरक्षा ।। नषेधस्येन्द्रियजयोपायत्वमाह मुलारा-इंदियणिवारणे इंद्रियज्ञानस्य रागद्वेषमूलस्य निरोधने निमिसभूतः । समस्या निमित्तार्थे विधानान् । अंकुसो व उत्पथगमन निबारणे इति शेषः । खादिगा वि स खातिका यथा निवारणोपायः। इदियगुत्ति रागद्वेषोत्पत्तिनिमितेंद्रियज्ञाननिवारणोपायः॥ अर्थ-जैसे कुमार्गमें प्रधृत्त हुए हाथीको अंकुश निवारण कर योग्य मार्गपर लाता है. खंदक अर्थात खाईसे जैसे नगरका रक्षण होता है वैसे परिग्रहका त्याग करनेसे रागद्वेष. जिसके मूल कारण है ऐसे इंद्रिय ज्ञानकी TAMANNEReso
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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