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नागधना
गावाना
से नांगरता है, उसमें बीज बोता है, धान्य पकनेपर, उसको काटता है, मलता है इतने कार्य परिग्रहका संग्रह करने के लिये करता है, इस परिग्रहके निमित्त ही मनुष्य कपडे सीता हैं, युनता है, और याचना करता है, कुलीन I होकर भी ऐसे ऐसे कार्य करता है.
सेबई णियादि ग्बखइ गोमहिसमजावियं हयं हत्थि ॥ ववहरदि कुणदि सिप्पं अहो य रत्ती य गयणिहो । ११५५ ॥ आउवासस्स उर देइ रणमुहम्भि गथलोभायो । मगरादिभीमसावरवलं अधिगच्छदि समुहं ११३६ ॥ क्रीणाति बया व गोमहिप्यादि रक्षति ।। अर्थाधी लोहकाहास्थिस्वर्णकर्म करोति ना ॥ २ ॥ रुधिरकर्दमदुर्गममाहवं निशितशस्त्रविदारितकुंजरं ॥ हरिपुरस्सरजंतुविभीषणं भ्रमति वित्तमना गहनं वनम् ॥1 ॥ विपलवीचिधिगाडनभस्सलं मारपूर्षकवायरसंकुलम् ।
जलनिधि द्रविणार्जमलालसो विशति जीवितनिस्पृहमानसः ॥ ११७८ ।। बिजयोव्या-याजधवासस्स उर देव आयुधधर्मस्य उरो ददाति ! रणमुद्दे रणमुखे। गंथलोहारी र भान् मकरादिमीमध्वापद बटुलं प्रविशति समुत्रं ।
मूलारा-शिबादि चिंति निविणइ इति लोके । यबहरधि क्रयविक्रयादिकं करोति । सिपं लेपालिलविज्ञान । एतां श्रीविजयो नेच्छति ।
मूलारा--आउधवासस्स आयुधवर्षस्थ । झत्रपातम्येत्यर्थः । सायद वापसः । अतिऋरत्यर पाएनाकगदयोऽप्येवमुक्ताः । अदिगमछादि प्रविशति ।
अर्थ- यह मनुष्य माणी सेवा करता है, गौ. महिप. चकरी, भेडे, हाथी, घोडा वगैरह प्राणि ओंका रक्षण
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