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________________ मुलाराधना স্বাস্থ্য || आचार्थने तालपलंबका उदाहरण दिया है. तालपलंब इस सामासिक शब्दमें जो ताल शब्द है उसका अर्थ ताहका वृक्ष इतनाही लोक नहीं समझते हैं किंतु बनस्पतिका एकदेशरूप जो ताटका वृक्ष वह वनस्पतिओंका उपलक्षण रूप समझकर उससे सम्पूर्ण वनस्पतिओंका ग्रहण करते हैं. ___कल्पनामक ग्रंथमें इस विषय में ऐसा कहा है 'हरिद तणोसधि' इति .... " हरित, नृपा, फलकी पक्कदशा होने तकही टिकनेवाली वनस्पतिको औषधि कहते हैं. गुच्छ, गुल्म-छोटे छोटे पोधे, वेली, कोमल वृक्ष, वगैरह बनस्पतिओं का ताल शब्दसे संग्रह होता इमलिये ताल शब्दसे संपूर्ण वनस्पतिका जैसा संग्रह माना जाता है पैसा 'आचलक्य' याबदस संपूर्ण परिग्रहोंका त्याग यह अर्थ उपलक्षणसे ग्रहण किया जाता है. 'तालप्रलंघ' इस शब्दमें जो प्रलंब शब्द कहते है उसका स्पष्टीकरण ऐसा है- प्रलंबके मूलप्रलंब. अग्रप्रलंब ऐसे दो भेद हैं. कंद मूल और अंकुर जो भृमीमें प्रविष्ट हुये हैं उनको मूलप्रलंब कहते हैं. अंकुर, कोमल पत्ते, फल, और कटार पने इनको अग्रालंब कहते हैं. अर्थात् तालप्रलब इस शब्द का अर्थ उपलक्षण वनस्पति ओंके अंकुरादिक ऐसा होता है. सालमलंब शन्दसे जम संपूर्ण वनस्पतिआंके अंकुगदिकका ग्रहण हो जाना है वैसे प्रस्तुत विषय भी आचेलस्य शब्दका गंपूर्ण परिग्रह-त्याग यह अर्थ अभीष्ट है. अथवा यहां आदि शब्दका लोप हुआ हे एगा समझना चाहिये. अधीन अचल शब्दक आगक आदि नन्दका लोप हुआ है. 'अंचलादित्य के ख्वज में अल शब्दका प्रयोग कर आदि शब्दका लोप किया गया है. नालपलंब इस सत्र में तालादि ऐसा शब्दप्रयोग न करके तालपलंब ऐसा कहा हैं. सिद्धांतके आधारसे आचलक्य सूत्र का आचार्यन देशामर्शक सूत्र कहा है परंतु यहाँ आदि शब्द लुम हुआ है ऐसा जब मानते हैं. तब यह सूत्र देशामर्शक नहीं है ऐसा समझना चाहिये, MAN ११३२ ण य होदि संजदो बत्थमित्तचागेण सेससंगेहि ॥ तह्मा आचेलक चाओ सबोस होइ संगाणं ॥ ११२४ ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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