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________________ चलाराधना आश्वासः १ आवीचिमरण-वीचि शब्दका अर्थ 'तरंग' ऐसा होता है. तरंगके समान जो आयु कर्मका प्रतिसमय उदय आता है उसका भी.यहां वोचि शब्दसे आचार्य उल्लेख करते हैं, जैसे नदी समुद्र इत्यादिकोंमें निरंतर लहरें उछलती हैं वैसे आयु कर्म प्रतिसमय उदयमें आता है. अतएव उसके उदयको आवीधि कहते हैं. आयुका अनुभव लेना वह जीवित है. वह जीवित प्रति समयमें रहता है. प्रत्येक समयका जीवित नष्ट होना यह मरण है. अतः प्रति समयके भरणको भी यहां वीचि कहते हैं आयुफे अनंतर मरण भी प्रतिसमय होता रहता है अतः वह मरण 'आवीचि मरण' ऐसे नामसे प्रसिद्ध है, यह आवीचि मरण भव्य जीवोंके प्रति अनादि और सनिधन है. भव्यको जप मोक्षपासि होती है तब यह मरण नष्ट हो जाता है अतः इसको सनिधन कहते हैं, मोक्षके पूर्वम भन्यको हमेशा मरण था इसकी अपेक्षासे उसे अनादि भी कहते हैं. अतः यह मरण भव्योंकी अपेक्षासे अनादि सनिधन है. शंका-सिद्धाको ही मरण नहीं है उनके जन्म मरणका नाश हो चुका है परंतु सिद्धसे व्यतिरिक्त जीयोंको हमेशा मरण है ही. सिद्ध जीवको भब्ध भी नहीं कहना चाहिये । जिनको भविष्य कालमें सिद्धत्व पर्याय प्राप्त होगा उनकोही अन्य कहते हैं. सिद्धोंकोचो सिद्धत्व पर्याय मिल चुका है अतः उनको भव्य कहना योग्य नहीं है, सिद्धोंकी अपेक्षासे ही आबीचि मरण अनादि सनिधन है. भन्योंकी अपेक्षासे वह अनादि और सनिधन ही समझना चाहिये. उत्तर- भरियाणमणादियं मरणं आपीचिगं सणिणं च' अर्थात् भव्योंका आवीचि मरण अनादि और सनिधन है ऐसा आगममें कहा है. जिसने भच्यत्वपर्याय प्राप्त किया था वहीं यह द्रव्य है ऐसी अपेक्षासे भव्योंका मरण अनादि सनिधन है ऐसा कह सकते हैं. अर्थात् सिद्धोंको भी भूतपूर्व नयकी अपेक्षासे भत्र्य कहते हैं. अभव्योंकी अपेक्षासे यह आवीचि मरण अनादि अनिधन है, अर्थात प्रतिसमय उनको आयुका उदय रहता ही है. भयकी अपेथाले अथवा क्षेत्रकी अपेक्षासे यह मरण सादि कहते है. आयु शर्मा के चार भेद है। उसमें यद्यपि प्रत्येक गतिमें दो. आयुकी सत्ता रहती है तो भी एकही आयुका उदय रहता है अर्थात् जिस गतिमें यह प्राणी उत्पन्न होता है उस गतिके अनुकूल आयुकाही उदय होता है. ।
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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