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मूलाराधना
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सुंडय संसग्गीए जह पादुं सुंडओ मिलसदि सुरं ॥ विसर तह पयडीए संमोहो तरुणगोठ्ठीए ॥ १०७८ || इंद्रियार्थ रतिर्जीवो युवगोष्ट्या विमूढधीः ॥
शौण्डगोष्टा यथा शौण्डः सुरां कांनति सर्वदा ॥ ११११ ॥
विजयोदया-मुंडय सम्गीय यथा शौडमोठ्या जह पाहुं सुरमभिलसदि यथा पातुं सुराममिलपति तथा पडी संमोहो तथा प्रकृत्या संमोहः । तरुण गोड़ीय विषममितिगोट्या विश्यानभिलपति ||
मूलारा - सुंडय इति-डयस गोळ्या | पापा ॥
अर्थ — जैसे मद्यपीके सहवाससे मयका प्राशन न करने वाले मनुष्य को भी उसके पानकी अभिलापा उत्पन्न होती है वैसे तरुणों के संगसे वृद्ध मनुष्य भी विषयोंकी अभिलाषा करता है.
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तरुणेहिं सह बसंतो चलिंदिओ चलमणो य वीसत्थो ॥'
अचिरेण सइरचारी पावदि महिलाकदं दो विश्रवश्च पलाक्षो यः स्वैरी तरुणसंगतः ॥
महिलाविषयं दोषं स शीघ्रं लभते नरः ॥ ९११२ ॥
विजयोदया - तरुणेर्हितः सह वसन नलेन्द्रियचलचिला सुछु विश्वस्तः अचिरेण स्वैरचारी। पादि प्रमोति । महिलाकद दोसं वनिताविषयं दोषं ॥
॥ १०७९ ॥
मुळारा - तरुणेहिं इति सहचारी स्थैरचारी | महिलागदं स्त्रीविषयं ॥
अर्थ-तरुणों के संसर्गसे वृद्ध मनुष्यकी इंद्रियां रूपादिविषयोंमें उत्सुक होती हैं. मन चंचल बनता है और स्त्रियोंमें विश्वास रखकर वह स्वच्छंदी होना है. त्रियों के सहवाससे वह दोषी बनता है
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पुरिसरस अप्पसत्थो भावो तिहिं कारणेहिं संभव || वियरम्मि अधयारे कुसीलसेवाए ससमक्खं ।। १०८० ॥
आश्वास
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