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________________ मूलाचार प्रदीप] [ प्रथम अधिकार एतदंगमहाग्रंयं, समस्ताचारदीपकम् । मया प्रोक्तम् कथं शक्यं, कविना स्वल्पबुद्धिना ॥४२।। तथापि पूर्ववर्यादि, प्रणाभाजितपुण्यतः। स्तोक मारं करिष्यामि, ग्रंथमाचारसूचकम् ।।४।। अर्थ-समस्त आचारांगों को प्रकाशित करने वाले दीपक के समान यह आचारांग नामका बड़ा ग्रंथ है । यह इतना बड़ा महापंथ भला अत्यंत थोड़ी सी बुद्धि को धारण करने वाले मुझ ऐसे कविसे कैसे कहा जा सकता है ।।४२॥ तथापि पहिले के आचार्यों को प्रणाम करने से उत्पन्न हुए पुण्य के प्रभाव से आचार को सूचित करने थाले बहुत ही स्मल्म और भारत की रचना मैं करूंगा ॥४३॥ तस्यादौ ये जिनः प्रोक्ता, प्रष्टाविंशति संख्यकाः । परा मूलगुणाः साराः, भूलभूताः भुयोगिनाम् ।। गुणानां चात्र दोक्षाया, प्राचारस्य पिशवंकरान् । सान् प्रवक्ष्ये स्वशरमाहं, मर्यान् सर्वार्थसाधकान् ॥ ____ अर्थ- इस ग्रंथके प्रारंभ में भगवान जिनेन्द्रदेव के कहे हुए और श्रेष्ठ मुनियों के मूलभूत २८ मूलगुणों को कहूंगा; ये मूलगुण सर्वोत्कृष्ट हैं, मुनियों के गुण वीक्षा और आचार को मंगल करने वाले हैं और समस्त अर्थों की सिद्धि करने वाले हैं उन्हीं सबको मैं अपनी शक्ति के अनुसार कहूंमा ॥४४-४५॥ २८ मूलगुणों का संक्षिप्त में वरणनमहावतानि पंचव, परा समिसयस्तथा। पंचेन्द्रियनिरोषारच, लोचनावश्यकानि षट् ॥६॥ अचेलत्वं, ततोऽस्नानम् अराशयनमेवाह । अदन्तघर्षणं रागदूरं च स्मिति भोजनम् ॥४७॥ एकभक्त समासेनामी, सन्मूलगुणावृषः । विज्ञेयाः कर्महंतारः, शिवशर्मसुखाकराः ।।४।। पुनरेतान् प्रवक्ष्यामि, विस्तरेण पृथक पृथक् । विस्ताररुचि शिष्याणामनुग्रहायसिसये ॥४६॥ अर्थ-५ महावत, ५ समिति, ५ इंद्रियों का निरोध, ६ अावश्यक, (१) केशलोंच (२) नग्नत्व धारण करना (३) स्नान नहीं करना (४) दंत-धावन नहीं करना (५) रागरहित खड़े होकर भोजन करना (६) दिन में एकबार हो भोजन करना और (७) भूमिपर शयन करना ये संक्षेप में २८ मूलगुण हैं। ये समस्त मूलगुण कर्मों को नाश करनेवाले हैं और मोक्षके सुख तथा सिद्धों में होनेवाले समस्त गुणों को देनेवाले हैं । विद्वानों को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए ॥४६-४८॥ 'पुनरेतान प्रवक्ष्यामि' के अन्तर्गत प्रतिज्ञा-कथन । अर्थ-विस्तार के साथ समझने वाले शिष्यों का उपकार करने के लिए तथा सिद्ध अवस्था प्राप्त करने के लिए आगे हम इनका अलग-२ स्वरूप विस्तार के साथ कहते हैं ।।४६॥
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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