SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 528
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूलाचार प्रदीप] ( ४८३ ) [ द्वादश अधिकार चर्या परीषह जय का स्वरूपभीमारण्यादिषुर्गेषु मानावेशपुरादिषु । विहरविः साखंडपाषाणकंटकादिभिः ॥३१४६॥ जातपादथ्यथामा यः क्रियतेसर्वधाजय । नियम तयेचपिरीषह जयोत्रसः ।।३१५०।। अर्थ-जो मुनिराज भयानक धन में, पर्वत पर, फिलों में अनेक देश और नगरों में बिहार करते है तथा उस विहार में पत्थरों के टुकड़े वा कांटे प्रादि के लग जाने से पैरों में अनेक छोटे-छोटे घाव हो जाते हैं तथापि वे दिगम्बर मुनिराज मोक्ष प्राप्त करने के लिये उस समको सहन करते हैं, जीतते हैं इसको चर्यापरीषह जय कहते हैं ॥३१४६-३१५०।। निषद्या परीवह जय का स्वरूपबहुपसर्गसंजातः कन्दराद्विवनाविषु । कृतवज्रासनादिभ्योऽचलनं यन्महात्मनाम् ।।३१५१॥ घृतासनविशेषाध्यानारोपितचेतसाम् । सर्वनाचलयोगानां निषशाजय एव सः ॥३१५२॥ अर्थ-जो मुनिराज किसी गुफा में पर्वत पर या वनाविक में किसी बनासन आदि कठिन अासन से विराजमान होते है और उस समय भी अनेक उपसर्ग उन पर श्रा जाते हैं तथापि वे मुनिराज अपने प्रासन से कभी चलायमान नहीं होते, इसीप्रकार विशेष-विशेष कठिन प्रासन धारण करके भी वे अपने हृदय को ध्यान में ही लगाये रहते हैं और अपने योग को सदा अचल बनाये रखते हैं, उनके इस परिषह सहन करने को निषधा जय कहते हैं ॥३१५१-३१५२॥ दाय्या परीषह जय का स्वरूपस्वाध्यायध्यानयोगाध्वनमखेदाविहानये । निद्रा मोहूतिकी युक्त्यानुभवद्भिजिताशयः ॥३१५३।। वण्डकपाश्वंशय्यादौक्रियतेपरिवर्तनम् । न सिंहाझ पसगौर्यच्छच्या जयएव सः॥३१५४॥ ___ अर्थ-जो मुनि स्वाध्याय, ध्यान, योग और मार्ग का परिश्रम दूर करने के लिये युक्तिपूर्वक मुहर्तमात्र की निद्रा का अनुभव करते हैं, उस समय में भी अपने हृदय को अपने वश में रखते हैं, दंड के समान वा किसी एक कीट से सोते हैं, सिंहादिक का उपद्रव होनेपर भी जो कभी कर्वट नहीं बदलते उसको शय्या परिषह जय कहते हैं। ॥३१५३-३१५४॥ आक्रोश परीषह जय का स्वरूपमिभ्यादगम्लेच्छचांडालशशुपापितुरात्मनम् : पवाद्यवमानायज्ञाषिकारवांसि च ॥३१५५।।
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy