SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 5 श्री वीतरागाय नमः श्री बचाव, कीत्ति विरचित -: मूलाचार प्रदीप : ( भाषा टीका सहित ) मंगलाचरण संस्कृत प्राचार्यकृत- श्रीमंत मुक्ति भर्त्तारं वृषभं वृषनायकं । धर्म-तीर्थकरं येष्ठं वंदेऽनंतगुणार्णवम् ॥३१ ॥ । भाषा टीकाकार कृत मंगलाचरण परमेष्ठी पांचों भ्रू, जिनवाणी उर लाय। मूलाचार प्रतीप की, टीका लिखू बनाय ॥ अर्थ -- जो भगवान श्री वृषभदेव स्वामी अंतरंग, बहिरंग लक्ष्मी से सुशोभित हैं, जो मुक्तिरूपी स्त्री के स्वामी हैं, धर्म के नायक हैं, धर्म तीर्थ की प्रवृत्ति करने वाले हैं, इस युगके तीर्थंकरों में प्रथम तीर्थंकर हैं और अनंतगुरणों के समुद्र हैं, ऐसे भगवान् वृषभदेव की वंदना करता हूँ । आचारांग बभाषे यी, यत्नाचार मिरूपकम् । ब्रावो चतुर्थकालस्यात्राद्य, मोक्षाप्तये सताम् ।। तमादितीर्थंकर्त्तारं यमाचार्यपरायणम् । श्राचार शुद्धये स्तौमि घर्मती प्रवत्तं कम् || ३ || अर्थ —- सज्जन पुरुषों को इस भरतक्षेत्र में श्राज भी मोक्ष प्राप्त करने के लिये इस चतुर्थ कालके प्रारंभ में ही जिन्होंने मुनियों के आचरणों को निरूपण किया था तथा जो मुनियों के प्राचरण पालन करने में स्वयं तत्पर हुए थे और जिन्होंने इस युग में धर्मतीर्थ की प्रवृत्ति की है, ऐसे प्रथम तीर्थंकर भगवान् वृषभदेव की मैं आचार्य ( सकलकीति ) अपने प्राचरण शुद्ध करने के लिये स्तुति करता हूं ॥२-३॥ येन प्रकाशितं लोकेऽस्मिन्नाचारांग मूजितम् । हीयमानमपि स्थास्यति, यावदंतिमं दिनम् ॥४॥ कालस्य पंचमस्यावो, तं नौम्याचारपारगम् । श्री बद्ध माननामानं मिथ्याज्ञानतमोपहम् ॥ ५॥
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy