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________________ दशमोधिकारः मंगलाचरण प्रर्हतः सिद्धनाथांश्च समाधिघोषिपारगान् । जन्ममृत्युजरान नौमि योषिसमाषये ॥२६४३ ॥ अर्थ - अब मैं रत्नत्रय और समाधि की प्राप्ति के लिये जन्म मरण तथा बुढ़ापे को नाश करनेवाले और रत्नत्रय तथा समाधि पारगामी ऐसे भगवान् अरहंतदेव को तथा सिद्ध भगवान को नमस्कार करता हूं ।। २६४३ ।। प्रत्याख्यान संस्तर के कथन की प्रतिज्ञा संक्षेपेाचयामि सद्यतीनां समाधये । अधिकारं परं प्रस्थात्मान संस्त र संज्ञकम् ।। २६४४ ।। अर्थ - अब मैं श्रेष्ठ सुनियों को समाधि प्राप्त करने के लिये संक्षेप से प्रत्यानारा के काम करता हूं ।। २६४४ ॥ किन कारणों के माने पर सन्यास धारण करें उपसर्गेतियुमिवृद्धत्येच्या बिसंचये । प्रसाध्येनिष्प्रतीकारमन्वाक्षे सति कारणे ।। २६४५ ।। व्रतभंगा विकेन्यस्मिन् वा सन्यासं तपस्विनाम् । विधातु युज्यते नूनं प्रयत्नेन हिताप्तये || २६४६॥ अर्थ -- किसी उपसर्ग के मा जानेपर, घोर बुभिक्ष पड़ जानेपर, अत्यन्त वृद्धावस्था मा जानेपर, अनेक प्रसाध्य और उपायरहित व्याधियों के आ जानेवर, नेत्रों की ज्योति मंद हो जानेपर वा व्रतभंग के कारण मिल जानेपर वा और भी ऐसे ही ऐसे कारण आ जानेपर, तपस्वियों को अपना ग्रात्महित करने के लिये प्रयत्नपूर्वक सन्यास धारण करने के लिये प्रयत्न करना चाहिये ।।२६४५-२६४६।। मरण निकट जानकर समाधि का उद्यम व क्षमा मांगना चाहिये- प्रसन्न मरणं स्वस्य कश्चिद्विशामसन्मुनिः । निमित्तार्थ: समाध्यर्थं कुर्याद्य श्रममंचसा ।। २६४७० प्रापृच्छ्यस्वसुगुबीन्ामयित्वाखिलान्परान् । त्रिशुद्धायुक्तिमावः स्वयं स्थास्वमान || अर्थ- श्रेष्ठ मुनियों को किसी निमित्तशास्त्र आदि के द्वारा अपना मरण निकट जानकर समाधि के लिये बहुत शीघ्र उद्यम करना चाहिये । इसके लिये सबसे पहले उन मुनियों को अपने श्रेष्ठ गुरुसे पूछना चाहिये और फिर मन-वचन-काय की
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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