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________________ मूलाचार प्रदीप] ( ४०३ ) [ नवम अधिकार नामाचा:अमणा शेषाः गुणहीनाविधेवंशात् । भ्रमम्ति संसृतौनवलभन्तेस्वेष्टसम्पदः ॥२६२६॥ अर्थ- इनमें से एक भावभ्रमण हो शुद्ध रत्नत्रय से सुशोभित है वही मुनि समस्त अभ्युदयों के सुखों को भोगकर मोक्ष का स्वामी बनता है । बाकी के नामश्रमण, स्थापनाश्रमण वा द्रव्यश्रमण गुणों से रहित है और अपने-अपने कर्मों के निमित्त से संसार में परिभ्रमण ही करनेवाले हैं । इसलिये वे अपनो मोक्षरूप इष्ट सामग्रीको कभी नहीं पा सकते ॥२६२५.२६२६॥ भावलिंगी बनने को प्रेरणामत्वेतिभावलिगी त्वं भवरत्नपातितः । त्यत्वायोगिविषासंगंयदीच्छसिशिवधियम् ।२६२७॥ अर्थ-इसलिये हे मुने ! यदि तू मोक्षलक्ष्मी को चाहता है तो ऊपर कही हुई सब बातों को समझकर और बाह्य अभ्यंतर दोनों प्रकार का परिग्रह छोड़कर भावलिंगी बन और शुद्ध रत्नत्रय को धारण कर ॥२६२७।। भिक्षाचर्या को महत्ता एवं उसे धारण करने की प्रेरणावतशीलगुणाः सर्वेस्युभिमाचर्यया परा: । भिमाचर्या विशोध्यातो बिहरन्तु शिवाधिनः ।।२६२६॥ ___ अर्थ---भिक्षाके लिये होनेवाली चर्या की शुद्धि से प्रतशील आदि समस्त उत्कृष्ट गुण प्रगट होते हैं । अतएव मोक्षकी इच्छा करनेवाले मुनियों को भिक्षाके लिये होनेवाली चर्या को विशुद्धतापूर्वक धारण करते हुए विहार करना चाहिये ॥२६२८।। किसे गुणों की खानि कहते हैंभिक्षावाक्यमनोयनामोविशोध्यचरेसदा । चारित्रं स जिनः प्रोक्तो मुनिश्विगुणाकरः ॥२६॥ अर्थ-जो मुनि भिक्षा वचन मन और चारित्र को प्रयत्नपूर्वक शुद्ध कर अपनी प्रवृत्ति करता है उसको भगवान जिनेन्द्रवेष समस्त गुणों को खानि कहते हैं। ॥२६२६॥ शक्ति अनुसार ध्यानादि पालना चाहियेद्रव्यं क्षेत्र तथा कालं मा शक्ति नियुष्य च । ध्यानाष्पयनमात्य वृत्तपरन्तुपन्डिताः ।।२६३०॥ अर्य-प्रतएव विद्वान् मुनियों को व्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और अपनी शक्ति को समझकर ध्यान अध्ययन और चारित्र को अच्छी तरह पालन करना चाहिये । ॥२६३०॥
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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