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________________ मूलाचार प्रदीप ] ( ३८३ ) [ नवम अधिकार अर्थ-जो धीर बीर और वैराग्य को धारण करनेवाला सम्यवष्टि थोड़ा सा आगम भी पढ़कर पारित्र का पालन करता है वह पुरुष उस चारित्र को पालन करने से ही शुद्ध होता है, बिना चारित्र के कोई भी मनुष्य शुद्ध नहीं हो सकता । जो ज्ञानी पुरुष वैराग्य से रहित है वह समस्त मागम को पढ़कर भी यदि चारित्र धारण न करे तो वह कर्म के बंधन से कभी शुद्ध नहीं हो सकता ॥२४६६-२४६७।। मुनि धर्म के पालने योग्य क्रियाओं की प्रेरणाभिक्षा चर वसारण्ये स्तोकं स्वादातिगंजिम् । माषिधेहि व्यासारं बहजल्पममात्मवान् ।।२४६८॥ सहस्वसकलं दुःखं जयनि च भाथय । मैत्री च सुष्टुवराग्यं कुरुकृत्यंषाप्तये ॥२४६६ एकाकीध्यानसंलोनोनिष्कषायोऽपरिग्रहः । निष्प्रभावो निरालम्बो जिताक्षा भवसन्मने ॥२५००।। अर्थ- प्रतएव हे मुने ! त भिक्षावृत्ति धारण कर, वनमें निवास कर, स्वाद रहित थोड़ा भोजन कर तथा व्यर्थ और असारभूत बहुत सी थकबाद मत कर । हे प्रात्मा के स्वरूप को जानने वाले तू सब दुःखों को सहन कर, निद्रा को जीत, मंत्री भावना को चितवन कर, उत्कृष्ट वैराग्य धारण कर, जो कुछ कर वह धर्म को प्राप्ति के लिये कर, एकाको होकर ध्यान में लीन हो, कषायरहित हो, परिग्रह रहित हो, प्रमाव रहित हो, प्रालंबन या किसी के प्राथय से रहित हो और जितेन्द्रिय बन । ।। २४६८-२५००॥ चित्त की एकाग्रता धारण करने की प्रेग्गानिस्सगस्तत्वधिल्लोकव्यवहारातिगोयते । भयंकाप्रस्थचित्तस्त्वं वृथा सत्कल्पनश्चकिम् ॥२५०१॥ अर्थ-हे मुने ! तू समस्त परिग्रहों से रहित हो, तत्त्वों का जानकार बन, लोकव्यवहार से दूर रह और चित्त की एकाग्रता धारण कर । क्योंकि स्मथ को अनेक कल्पनाएं करने से क्या लाभ है ? अर्थात् कुछ भी नहीं ॥२५०१।। चारित्र सहित अल्प ज्ञान सिद्धि का कारण एवं चारित्र रहित बहुमान भी मुक्ति प्रदाता नहींयो योगीवळचारित्रःपठित्वाल्पजिनागमम् । वशपूर्वधर सोन्यं जयेन्मुफ्त्याविसापनरत् ॥२५०२।। चारित्ररहितो गोत्र श्रुतेम बहुनापिकिम् । साध्यं तस्य यतो नूनं मज्जन भषयारिषौ ।।२५०३।। अर्थ-जो योगी वृद्ध चारित्र को धारण करता है वह थोड़े से पागम को भी पढ़कर जानकार ऐसे अन्य मुनि को स्वर्गमोक्ष को सिद्ध करने के कारण वस पूर्व के जानकार को भी जीत लेता है । जो पुरुष चारित्र रहित है वह यदि बहुत से श्रुतमान
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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