SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 411
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूलाचार प्रदीप] अष्ठम अधिकार हैं । ये मुनिराज परम्परा से चले आए इसप्रकार के लाभ की सिद्धि के लिये तथा आत्मा शुद्ध करने के लिये आहार लेते हैं स्वाद के लिये आहार नहीं लेते ॥२३६१. २३६२।। मुन्दर-असुन्दर प्राहार मिलने पर मुनि गन्तुष्ट और खेद खिन्न नहीं होत– आहारेसोभनेलसंतुष्टास्ते भवन्ति । अलामेवाशुभानाप्तेदुर्मनस्का न मातुधित् ।।२६६३।। अर्थ-यदि अच्छा सुन्दर प्राहार मिल जाय तो वे सन्तुष्ट नहीं होते और यदि आहार न मिले वा मिले भी तो अशुभ अन्न मिले तो वे मुनिराज अपने मन में कभी खेद खिन्न नहीं होते हैं ॥२३६३॥ प्राण जानेपर भी मुनिराग भोजन की याचना नहीं करतेदेहीति चीनवाक्यं ते प्राणान्तेपि बदन्ति न । स्तुवात्मन्यं न दानायसम्मौनव्रतधारिणाः ।।२३६४॥ अर्थ-'मुझे दो' इसप्रकार के दीन बचन वे प्राण नाश होनेपर भी कभी नहीं करते हैं तथा श्रेष्ठ मौनव्रत को धारण करनेवाले वे मुनिराज दानके लिये कभी किसी को स्तुति भी नहीं करते ॥२३६४।। मुनि अयोग्य आहार की इच्छा नहीं करतेअनशनीयमाहार कंदवोजफलादिकम् । अपक्वमम्मिनाकिचिद्वीरानेच्छन्तिदोषतम् ।।२३६५।। अर्थ-जो प्राहार ग्रहण करने योग्य नहीं है ऐसे अग्निमें बिना पके हुए और इसीलिये अत्यन्त दोष उत्पन्न करनेवाले कंद, बीज, फल आदि को ग्रहण करने की कभी इच्छा भी नहीं करते हैं ।।२३६५॥ मुनि कसा भोजन ग्रहण नहीं करतेरात्रोस्थितंयवन्नादिसुस्वाद चलित तथा । तद्दिनौत्य न गृहन्तितरसर्व मुनयः क्यचित् ।।२३१६॥ अर्थ-वे धीर वीर मुनिराज रात्रि में रक्खे हए अन्न को कभी ग्रहण नहीं करते, तथा उसो दिन के बनाये हुए परन्तु स्थाद से चलित हुए प्रश्नको भी कभी ग्रहण नहीं करते हैं ।।२३६६।। निदोष अाहार करके भी मुनि प्रतिक्रमण करते हैंनिदोषाशनमप्यत्र भुक्त्वा तदोषशंकिताः । प्रतिक्रमणमात्मशाः कुर्वन्ति व्रतयुद्धमे ।।२३६७।। अर्थ-प्रारमाके स्वरूप को जानने वाले वे मुनिराज अपने पत्तों की शुद्धि के
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy