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________________ चार प्रदीप ! ( ३६५ ) [ अष्ठम अधिकार की शुद्धता पूर्वक व्यालोस दोषों से रहित, संयोजना प्रमारण धूम अंगार नामके दोषों से रहित शुद्ध आहार खड़े होकर करते हैं ||२३८५-२३८६ ।। कैसे शाहार को मुनिराज छोड़ देते हैं उद्देश तथा ज्ञात कृतभस' स्वशंकितम् । दूरागतंसदोषं ते वजयन्तिविधानवत् ॥ २३८७ ॥ अर्थ- वे मुनिराज विष मिले हुए अन्न के समान सदोष आहार को छोड़ देते है दूरसे श्राए हुए आहार को छोड़ देते हैं जिसमें कुछ शंका उत्पन्न हो गई हो उसको भी छोड़ देते हैं, उद्दिष्ट और जाने हुए आहार को भी छोड़ देते हैं और स्वयं बनाये हुए को भी छोड़ देते हैं ।। २३८७|| मुनिराज भोजन की चर्या में छोटे बड़े का भेद नहीं करते विज्ञातानुमतातीतं नीोच्चगृहपंक्तिषु । मौनेनेवव्रजन्तोत्रभिक्षां गृह्णन्ति निस्पृहाः ।। २३८८ || अर्थ-से निस्पृह मुनि जाने हुए और अनुमोदना किये हुए श्राहार को भी छोड़ देते हैं तथा मौन धारण कर छोटे बड़े सब घरों की पंक्तियों में घूमते हुए आहार ग्रहण करते हैं ||२३८८ ।। रसना इन्द्रियजयो मुनि बाचक वृत्ति से शुद्ध आहार लेते हैं उवा शीतलक्षंमुख रसान्वितम् । क्षारं वा लवरणालीतंसुस्वास्वावदूरगम् ।।२३८६ ॥ श्रयाचितंयथालमाहारंपारणादिषु । स्वायं त्यक्त्वा च भुजन्तिजिह्वाहिकोलमोद्यताः ।। २३६० । अर्थ - जिल्हा आदि समस्त इन्द्रियों को कीलित करने में (च करने में ) सदा उद्यत रहनेवाले ये मुनिराज पारणा के दिन बिना याचना किया हुआ ठंडा, गर्म, सूखा, खा, सरस, लवरण सहित, लवण रहित, स्वादिष्ट, स्वाद से रहित ऐसा जो शुद्ध श्राहार मिल जाता है उसकी ही विना स्वाद के प्रहण कर लेते हैं ।। २३८६ २३६० ॥ मुनिराज स्वाद के लिये आहार नहीं लेते हैं प्राणों की रक्षा के लिये आहार लेते हैंअक्षम्रक्षणमात्रात प्राणस्थित्थभजन्ति ते । प्राणान् रक्षन्तिधर्माषं धर्मचरन्तियुक्तये ।। २३६१ ।। इत्यादिलाभसंसिद्ध तत्परंपरया विवः । भ्रयंत्यशनमात्मानमवाविहेतवे ।। २३६२ ।। अर्थ - जिसप्रकार गाड़ी को चलाने के लिये पहिया श्रोंगते हैं, उसमें तेल देते हैं, उसी प्रकार प्राणों को स्थिर रखने के लिये वे मुनिराज घोड़ासा श्राहार लेते हैं। वे मुनिराज धर्मके लिये प्राणों की रक्षा करते हैं और मोक्ष के लिये धर्म का साधन करते
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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