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________________ मूलाचार प्रदीप] ( २६५) [पष्ठम अधिकार ज्ञानरूपी सांकल से बांध लिया जाय तो फिर वह उन योगियों के वश में अवश्य हो जाता है । धर्मरूपी रस्नको अपहरण करनेवाले ये पंचेन्द्रियरूपी दुष्ट छोर जब ज्ञान के पाश में (जाल में) बंध जाते हैं तब फिर धे किसी प्रकार का विकार करने में समर्थ नहीं हो सकते हैं ! यह कामदेव रूपी महा ज्याला संसार भरमें वाह उत्पन्न करनेवाली है यदि इसको ज्ञानरूपी जलसे बुझा की जाय तो फिर वह मनुष्योंको भवनज्वाला उसी समय शांत हो जाती है । इस ज्ञानके ही द्वारा यह तीनों लोक हाथकी रेखा के समान स्पष्ट दिखाई पड़ता है तथा ज्ञानसे ही लोक, अलोक अपने तत्त्व और समस्त दूसरों के तस्य जाने जाते हैं । हेयोपादेय रूप समस्त तत्त्वों को, हित-अहित को और समस्त धर्म के विचारों को ज्ञानी पुरुष ही अपने ज्ञानसे जानता है, दूसरा कोई नहीं जान सकता। समस्त तत्त्वों को जाननेवाला सर्वज्ञ ही संसाररूपी समुद्र से पार होने के लिये समर्थ हो सकता है तथा ज्ञानी पुरुष अपने ज्ञानरूपी जहाज के द्वारा अन्य पुरुषों को भी संसार समुद्र से पार कर सकता है । ज्ञानी पुरुषों के सिवाय अन्य कोई भी संसार से पार नहीं कर सकता । तोनों गुप्तियों को पालन करनेवाला वीतराग झानी अंतमुहर्त में जितने कर्मों को माश कर सकता है उत्तने कर्मों को अज्ञानी पुरुष करोड़ों भव के तपश्चरण से भी नहीं कर सकता। इसका भी कारण यह है कि अज्ञानी पुरुष घोर दुष्कर तपश्चरण करता हुआ भी आस्रवादि के स्वरूप को न जानने के कारण कभी कर्मों से मुक्त नहीं हो सकता । असानी पुरुष हेय उपादेय को, विचार प्रविचार को, तत्त्व प्रतत्त्व को, शुभ अशुभ को, सार असार को और आस्त्रवादि को कभी नहीं जान. सकता ।।८०-१२॥ ज्ञानाभ्यास की प्रेरणामत्वेति कृत्स्नयत्नेनप्रत्यहं श्रोजिनागमम् 1 अधीध्वं मुक्तयेदक्षाविश्वविमामहेतवे ॥३॥ शानाभ्यासं विनाजातु न नेतम्या हिताधिभिः । एका कालकलालोके प्रमावेनमिवाप्तये ॥६॥ अर्थ-यही समझकर चतुर पुरुषों को पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिये तथा मोक्ष प्राप्त करने के लिये प्रतिदिन पूर्ण प्रयत्न के साथ श्री जिनेन्द्र देव के कहे हए आगम का अभ्यास करते रहना चाहिये। अपने प्रात्मा का हित करने वालों को मोक्ष प्राप्त करने के लिये इस संसार में ज्ञान के मभ्यास के बिना प्रमाव से भी कभी समय को एक घड़ी भी कभी नहीं होनी चाहिये ।।६३-६४
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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