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________________ मूलाचार प्रदोप] ( २६१ ) [पष्टम अधिकार स्वाध्याय काल में पढ़ने योग्य शास्त्रअंगपूर्वाणिवस्तूनिप्राभृतग्वीमि यानि च। भाषितानि गणापोरी:प्रत्येकशियोगिभिः ॥४४॥ श्रुतकेलिभिवितिः वशपूर्वधर वि। प्रप्रस्खलितसंवेगस्तानि सर्वाणि मोगिनाम् ।।५५ ।। उक्तस्वाध्यायवेलायां युज्यन्ते धायिकात्मनाम् । पठितु चोपदेष्टु च न स्वाध्यायं विमा क्वचित् ॥ ___ अर्थ-अंग, पूर्व, वस्तु तथा जो प्राभृत गणघरों के कहे हुए हैं प्रत्येक बुद्ध योगियों के कहे हुए हैं, श्रुत केलियों के कहे हुए हैं, दशपूर्वधारी विद्वानों के कहे हुए हैं अथवा जिनका संवेग कभी प्रस्खलित नहीं हुआ ऐसे योगियों के द्वारा कहे हुए हैं ये सब मुनियों को ऊपर लिखे हुए स्वाध्याय के समय में ही पढ़ने चाहिये तथा अन्य पार्य मुनियों को उनका उपदेश देना चाहिये। स्वाध्याय के बिना उनको अन्य किसी प्रकार से नहीं पड़ना चाहिये ।।५४-५६॥ अन्य काल में पढ़ने योग्य शास्त्रचतुराराधनाप्रथा मत्पुसाधनसूखकाः। पंचसंग्रहग्रंपाश्चप्रत्याख्यानस्तबोवाः ॥४७॥ षडावश्यकसंखषा महाधर्म कयाम्विलाः । शलाकापुरुषारांचानुप्रेक्षादिगुणभृताः ॥५८|| इस्याचा ये परे प्रयाश्चरित्रादय एव ते । सर्ववापठितु योग्या: सत्स्वाध्यायविनासतम् ॥ell अर्थ-मृत्यु के साधनों को सूचित करनेवाले चारों आराधनाओंके ग्रंथ, पंचसंग्रह (गोमट्टसार आदि) प्रत्याख्यान स्तुति के ग्रंथ, छहों आवश्यकों को कहने वाले ग्रंथ, महाधर्म की कथाओं को कहने वाले ग्रंथ, शलाका पुरुषों के ग्रंथ, अनुप्रेक्षादिक गुणों से परिपूर्ण ग्रंथ तथा चरित्र प्रादि जितने अन्य ग्रंथ हैं उनको सज्जन पुरुष स्वाध्याय के बिना अन्य काल में भी पढ़ सकते हैं ॥५७-५६॥ अंग और पूर्वादि शास्त्र का प्रारम्भ उपवासादि पूर्वक करना नाहियेअंगामा सर्वपूर्वाणा वस्तूना प्रामृतास्ममाम् । प्रारमेत्रसमाप्तौवंकसोहामुनमा पुरोः ॥६॥ उपवासो विधातम्यो व्युत्सर्गाः पंच वा दुषैः । प्रकालाविजदोषस्यविमुद्धचशिवाप्तये । ६१॥ अर्थ-ग्यारह अंग चौवह पूर्व वस्तु और प्राभृत शास्त्रों का स्वाध्याय प्रारंभ करने के समय तथा समाप्ति के समय गुरु को आज्ञासे एक-एक उपवास करना चाहिये अथवा बुद्धिमानों को पांच कायोत्सर्ग करना चाहिये । ये उपवास वा कायोत्सर्ग अकाल से उत्पशाहुए बोषों को शुद्ध करने के लिये तथा मोक्ष प्राप्त करने के लिये करने चाहिये ॥३०-६१॥ र
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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