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मुलाचार प्रदीप]
[पंचम अधिकार ६ अनायतन और उनके त्याग की प्रेरणामिथ्यासम्यक्त्वज्ञानकुचारित्राणिधियः । तवन्तस्श्रय एतानि निद्यानायतना निषट् ।।८।। श्वसंवसहननिविश्वपाषाकराशि च । त्याज्यानिदृष्टियाती नौमान्यनायतनानिषत् ।।६।।
अर्थ-मिण्यादर्शन, मिथ्याज्ञान, मिथ्याचारित्र और इन तीनों को धारण करनेवाले अज्ञानी ये ग्रह निद्य अनायतन गिने जाते हैं । ये ग्रहों अनायतन नरक के कारण हैं समस्त पापों को करनेवाले हैं और सम्यग्दर्शनका घात करनेवाले हैं । इसलिये बुद्धिमानों को इनका त्याग अवश्य कर देना चाहिये ।।८५-८६॥
कादि दोष के त्याग की प्रेरणादष्टेःप्रागुक्तनिःशंकादिभ्यः शंकावयोऽशुभाः । विपरीता बुधज्ञेपा प्रष्टीदोषा मलप्रवाः ॥७
अर्थ- पहले सम्यग्दर्शन के जो निःशंकित प्रादि आठ अंग यतलाये हैं उनसे विपरीत शंका कांक्षा आदि आठ दोष कहलाते हैं ये दोष भी सम्यग्दर्शन में मलिनता उत्पन्न करनेवाले हैं इसलिये बुद्धिमानों को इनका भी सर्वथा त्याग कर देना चाहिये । ॥१५८७॥
२५ दोपों के त्यागने की पुनः प्रेरणा--- एतेवोषा त्रिशुद्धयापरिहर्तव्यायपन्तकाः । पंचविंशतिरात्मजै विशुद्ध कुमार्गदाः ।।८।।
अर्थ--ये पच्चीसों दोष सम्यग्दर्शन को नाश करनेवाले हैं और कुमार्गको देने वाले हैं इसलिये प्रात्मा के स्वरूप को जाननेवाले विद्वानों को अपना सम्यग्दर्शन विशुद्ध रखने के लिये मन-वचन-कायसे इनका त्याग कर देना चाहिये ।।
मलीन सम्यग्दर्शन मुक्ति का कारण नहीं-- मलिने दर्पणे यवत्प्रतिविम्ब न दृश्यते । सदोषेवर्शनेतद्वन्मुक्तिस्त्रीवदनाम्बुजम् ।।६।। मस्वेसि दर्शनं जातुस्वप्नेपि मलसनिषिम् । निर्मलमुक्तिसोपानं न नेतन्यं शिवाणिभिः ॥१०॥
अर्थ-जिसप्रकार मलिन दर्पण में अपना प्रतिबिंब दिखाई नहीं देता उसी प्रकार मलिन वा सदोष सम्यग्दर्शनमें मुक्तिस्त्री का मुखकमल दिखाई नहीं देता । यही समझकर मोक्षकी इच्छा करनेवाले पुरुषों को मोक्षका कारणभूत अपना निर्मल सम्यादर्शन स्वप्न में भी कभी मलिन नहीं करना चाहिये ॥६-६०॥
__निर्मल सम्यग्दर्शन की महिमाधन्यास्तएवसंसारे अव पूच्या सुरःस्तुताः । दृष्टिरत्नं न ये नीत कदाचिम्मलासनिधौ ||१||