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________________ मूलाचार प्रदीप ( २३८ ) अधिकार आत्माको रोकना चाहिये और पूर्ण प्रयत्न के साथ समस्त आत्रबोंको रोकना चाहिये। ॥१॥ भावबन्ध और द्रव्यबन्ध का स्वरूपरागद्वेषमयेनात्र परिणामेन येन च । बध्यते कास्नकर्माणि भावर्बध स उच्यते ॥२॥ भावबंधनिमिसमसाई या कर्मपालः । संश्लेषोगिप्रवेशानां द्रव्यबंधः स कथ्यते ।।३।। अर्थ-जिन रागद्वषमय परिणामों से समस्त कर्म बंधते हैं उन परिणामों को भावबंध कहते हैं । उस भावबंध के निमित्तसे कर्मपुद्गलों के साथ-साय जो प्रात्मा के प्रवेशों का सम्बन्ध हो जाता है उसको द्रव्यबंध कहते हैं ।।१२-६३।। बन्ध के भेद और उनके कारणों का वर्णनप्रकृतिस्थितिबंधोनुभाग: प्रवेशसंशकः । इति चतुविधी द्रव्यबंधोबंधकरों गिनाम् ॥१४॥ प्रकृयामा प्रदेशस्य अंधौवाक्कायमानसः कषाय भवतो बंधोपसा स्थित्यनुभागयोः ।।६५॥ यथारजांसि तैलादिस्निग्धगाणदेहिनाम् । लगन्ति च तथा कर्भाणवोरागादिभिः सा ।।६६॥ अर्थ-प्रारिणयोंको बंध करनेवाला यह द्रव्यबंध, प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, अनुभागबंध और प्रदेशबंध के भेद से चार प्रकार का बतलाया है । इन चारों प्रकार के बंधों में से प्रकृतिबंध और प्रदेशबंध मन-वचन-कायके योगों से होते हैं और स्थितिबंध तथा अनुभागबंध कधाय से होते हैं । जिसप्रकार सेल आदि के द्वारा चिकने हुए मनुष्यों के शरीर पर धूल जम जाती है उसी प्रकार रागद्वेष आदि कारण आत्मा के प्रदेशों में कर्मों के परमाणु पाकर मिल जाते हैं ।।६४-६६।। बन्ध का फलयमा बंधन बद्धोत्र भुक्से दुःखमनारतम् । पराधीनस्तथाप्रारणी चतुगंलिषुसाधिकम् ।।७।। प्रभमः कर्मबंध यः छेत्तुं यानायुधाविभिः । कथं मुक्तो भवेत्सोनकुबंधपि सपोमहत् ।।६ यावछिनत्तिबंध न कर्मणां सत्तपोसिना। तावरसुखी व मायेशमुनिभ्रं मन् भवाटवीम् अर्थ-जिसप्रकार बंधन में बन्धा हुमा मनुष्य पराधीन होकर अनेक प्रकारके दुःख भोगता है उसीप्रकार कर्मबंधसे बंधा हुना यह प्राणी पराधीन होकर चारों गतियों में बहुत से दुःख भोगता है । जो मुनि महा तपश्चरण करता हुआ भी ध्यानरूपी शस्त्र से कर्मबंध को नाश करने में असमर्थ है वह मुक्त कभी नहीं हो सकता । यह मुनि जब तक श्रेष्ठ तपश्चरण रूपी तलवार से अब तक कर्मों के बंधन को छिन्न-भिन्न नहीं कर
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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