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________________ मुलाचार प्रदीप] ( २०७ ) [ चतुर्थ अधिकार समर्थ नहीं हैं वे ही वस्त्र ग्रहण करते हैं शुरवीर नहीं ॥८॥ अचेलकत्व मूल का पालने का फल-- जायन्ते जैननियरूपेण त्रिजगछियः । शक्कच फ्रिजिनेशाधिपयाम्यचिरतः सताम् ।।६।। तथा नैय्यवेषेण रत्नत्रिसयभागिनाम् । किकरा इवसेवन्ते पापमान सुरेश्वराः ॥७॥ अहो मुक्तिबधूरेत्य दत्तत्रालिंगनं मुदा । हिंगलंकार भाषा का कथादेवादियोषिताम् ।।८।। अर्थ-इस जिनलिंग वा निग्रंथ अवस्था से सज्जन पुरुषों को तीनों लोकों को लक्ष्मी प्राप्त होती है और इन्द्र चक्रवर्ती तीर्थकर प्रादि के उत्तम पद शीघ्र ही प्राप्त हो जाते हैं । इसके सिवाय इस निग्रंथ अवस्थाको धारण करने से रत्नत्रय धारण करने वाले मुनियों के चरण कमलों को इन्द्र भी आकर किंकर के समान सेवा करते हैं। आश्चर्य तो यह है कि दिशा रूपी वस्त्र अलंकार धारण करनेवाले मुनियों को मोक्ष रूपी स्त्री भी स्वयं प्राकर मालिंगन करती है फिर वेवियों की तो बात ही क्या है। ८६.८८॥ ब्रह्मचर्य को महिमा-- ब्रह्मवयं परं मम्ये तेषां ब्रह्ममयात्मनाम् । सम्माचरणं त्यक्त गांवतवाहिनाम् IIEI नग्ना अपि न तेनग्ना ये ब्रह्मांशुक भूषिताः। वस्त्रावृताश्च ते नग्ना ये ब्राह्मवतवरगा: IIEI नग्नत्वे थे गुणा व्यक्ता ब्रह्मचर्यप्रदीपकाः । वस्त्रावृते च ते सवें दोषाः स्युम्न ह्मघातकाः ।।६१॥ अर्थ-जिन्होंने अपने वस्त्र लंगोटी आदि समस्त आवरणोंका त्याग कर दिया है जिनके शरीर पर कुछ भी प्रावरण नहीं है परंतु पूर्ण ब्रह्मचर्य को पालन करते हैं। उन्हीं का ब्रह्मचर्य सर्वोत्कृष्ट समझना चाहिये । जो मुनि ब्रह्मचर्य रूपी वस्त्रों से सुशोभित हैं वे नग्न होते हुए भी नग्न नहीं कहलाते। तथा जो ब्रह्मचर्य व्रत से दूर रहते हैं और वस्त्रावरण धारण करते हैं वे नग्न न होने पर नान वा नंगे कहलाते हैं । नग्न अवस्था धारण करने से ब्रह्मचर्य को दिखलाने वाले वीपक के समान जो जो गुण हैं वे सब वस्त्र पहन लेने पर ब्रह्मचर्य को घात करनेवाले दोष कहलाते हैं ।।६६-६१॥ अल्प परिग्रह भी दुःख का कारणतथा कौपीनमात्रेपि सतिभोगे भवन्त्यपि । योगिा बहषो दोषाश्चिाताानहेतवः ।।१२॥ कोपोनेपि पचिमष्टे चित्त याकुलता भवेत् । तया दुनिमन्यस्य प्रार्धमा विश्वनिविता ।।६३|| अर्थ-यदि कोपीन मात्र का भी उपयोग किया जाय तो भी योगियों को
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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