SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूलाचार प्रदीप] ( २०६ } [ चतुर्थ अधिकार केशलोंच का उपसंहारात्मक विवरणइतिगुणमरिणखानि सर्वतीशसेव्यं मुनिवरगतिहेतु सत्तपो धर्मवीजम् । सुरशिवगतिमार्ग मुक्तिकामाः कुरुध्वं दुरिततिमिर भानु लोचमात्माविशुद्धय १०॥ अर्थ-यह केश लोच ऊपर लिखे हुए अनेक गुणरूपो मणियों को खानि है, समस्त तीर्थकर इसकी सेवा करते हैं अर्थात् लोच करते हैं, यह मुनियों को श्रेष्ठ गति का कारण है, धर्म का बीज है. मोक्ष वा स्वर्गगति का मार्ग है, और पापरूपी अंधकार को नाश करने के लिये सूर्य के समान है। ऐसा यह लोच मोक्षकी इच्छा करनेवाले मुनियोंको अपने प्रात्मा को शुद्ध करने के लिये अवश्य करना चाहिये ॥८॥ अचेलकत्व मूलगुण का स्वरूपवस्त्रेणाजिनवल्काभ्यां रोमपत्रतृपानिभिः पदकलेन वाग्यश्च स वैरावरणः परः ।।।। संस्कारैर्वजितं जातरूपं यद्धार्यते भुवि । सर्थदामुक्तिकामस्तदचेलकत्वमुच्यते ॥२॥ अर्थ-मोक्षकी इच्छा करनेवाले मुनि न तो वस्त्र धारण करते हैं न चमड़े से शरीर ढकते हैं, न वृक्षोंको छाल पहनते हैं, न ऊनी वस्त्र पहनते हैं, न पत्ते तृण आदि से शरीर ढकते हैं, न रेशमी वस्त्र धारण करते हैं तथा और भी किसी प्रकार का प्रावरण धारण नहीं करते । समस्त संस्कारोंसे रहित उत्पन्न होनेके समय जैसा इसका नग्न रूप धारण करते हैं इसको अचेलकत्व मूलगुरण कहते हैं ।।८१-८२॥ अचेलकत्व मूलगुण की पूज्यताइदमेव जगत्पूज्यं मोक्षमार्गप्रदीपकम् । गृहीतं श्रीजिनेन्द्राचं वंद्य देवनराधिप। ॥८॥ यतः पुरुषसिंहा ये जिनशिवलादयः । एत लिलयं गृहीत तर्षीरविवार्थसिद्धये ।।८४॥ अर्थ-यह नग्नरूप धारण करना ही जगत में पूज्य है मोक्षमार्गको दिखलाने वाला दीपक है, भगवान जिनेन्द्रदेव भी इसको धारण करते हैं और इसीलिये यह देवेन्द्र और नरेन्द्रों के द्वारा भी वंदनीय है। क्योंकि तीर्थकर चक्रवर्ती बलभद्र आदि जितने उत्तम पुरुष हुए हैं जन समस्त धीर वीर पुरुषों ने अपने समस्त पुरुषार्थ सिद्ध करने के लिये यह जिलिंग धारण किया है ।।८३-८४॥ __ कायर ही वस्त्र धारण करते हैकातरा थे निराकर्तुमक्षमा हि कुलंगिनः । कामादिकविकारास्त होतं चोवराविकम् ।।८।। अर्थ-जो कुलिंगी और कातर पुरुष कामाविक विकारों को नष्ट करने में
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy