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________________ मूलाचार प्रदीप] ( १५१ ) [ तृतीय अधिकार मध्याह्न को क्रियाओं में भक्ति विधानकामिंगलमध्याह्नक्रियायांमुनिसत्तमः । सिद्धीचत्य सत्पंचमुरुश्रीशांतिभक्तयः ।।६२७।। अर्थ-- मध्याह्नकी मांगलिक क्रियाओं में मुनियों को सिद्धभवित, चैत्यभक्ति, पंचगुरुभक्ति और शांति भक्ति पढ़नी चाहिये ।।१२७।।। मांगलिक शुभ कार्य में भक्ति विधानप्रत्याख्याने शुभेमंगलमोचरसमाह्वये । महासिद्धमहायोगभक्तोकृत्वा धतुविधम् ॥६२८।। प्रत्याख्यानं गृहोस्यकोपवासादिकगोचरम् । प्राधाय शांतिभक्ती चान्तस्य कुतु योगिनः ॥२६॥ अर्थ-किसी मांगलिक शुभ प्रत्याख्यान में महा सिद्धभक्ति और महा योगभक्ति पढ़ कर एक वा दो वा अधिक उपवास के लिये चारों प्रकार के प्राहारका त्याम कर प्रत्याख्यान ग्रहण करना चाहिये और अन्त में उन मुनियों को आचार्यभक्ति और शांतिभक्ति पढ़नी चाहिये ।।६२८-६२६।। रात्रि के समय योग धारण की विधिग्रहणं रानियांगस्य मोधने सुयोगिनः । योगक्ति प्रकुर्धेतु पापामनिरोधिनीम् ।।६३०॥ अर्थ-रात्रि योग धारण करते समय और उसका त्याग करते समय मुनियों को पापासव' को रोकनेवाली योगभक्ति पढ़नी चाहिये ।।६३०॥ बायोग धारण व निष्ठापन में कौनसी भक्ति करेंयोगस्य पहणे वर्षाकाले मिष्ठापने तथा। श्रीसिद्धयोगक्ति दत्त्वा प्रायो योगजितः ।।९३१॥ चतुदिक्षु चतस्रोनुचत्य भक्तयः एवहि। ततो भक्तिवयं पंचगुरुशान्स्याह्वयं परम् ।।८३२।। अर्थ-वर्षाकाल में योग धारण करते समय तथा अंतमें उसका त्याग करते समय सिद्धभक्ति, योगक्ति पढ़कर योग धारण करना चाहिये वर्षायोग धारण की प्रदक्षिणामें चारों दिशाओं में एक-एक चैत्यभक्ति पढ़नी चाहिये और फिर पंचगुरुभक्ति तथा शांतिभक्ति पढ़नी चाहिये इसी प्रकार वर्षायोग धारण करना चाहिये और इसी प्रकार उसका विसर्जन करना चाहिये ।।६३१-६३२॥ सिद्धांत-वाचना के समय भक्तिसिद्धांतवाचनाया ग्रहणे सिद्धभुताभिधे । भक्ति कृत्वा पुनर्दश्वा श्रुताचार्यातयेपरे ।।६३३॥ स्वाध्यायं किल मुलांतु तस्य निष्कोपने यमी । श्रुतश्रीशांति भक्ति च करोतु बहुभक्तये ॥३४॥ अर्थ-सिद्धांत वाचनाके ग्रहण करते समय सिद्धभक्ति और श्रुतभक्ति पढ़नी
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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