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________________ मूलाधार प्रदीप ] ( १५० ) [ तृतीय अधिकार अर्थ - इन भक्तियों में से चारित्रालोचना और आचार्यभवित भक्ति उत्पन्न करनेवाली हैं तथा बृहत् आलोचना और आचार्यभक्ति दोषों को दूर करनेवाली हैं । ६२१॥ अन्य प्रतिक्रमणों में भक्ति का विधान - एतबुक्तिद्वयमुक्त्वा शेषाः षड्भक्तयोपराः । प्रतिक्रमणशेषेषुक संध्या दोषहानये ॥२२॥ अर्थ - पाक्षिक चातुर्मासिक और वार्षिक प्रतिक्रमण को छोड़कर बाकी के जितने प्रतिक्रमण हैं उन सब में दोष दूर करने के लिए चारित्रालोचना और प्राचार्यभक्ति को छोड़कर बाकी की छहों भक्ति पढ़नी चाहिए ||२२|| दीक्षा ग्रहण करते समय तथा केशलोच करते समय कौनसी भक्ति करेंसद्दीक्षाग्रहणे लोचे सिद्धयोगसमाह्वये । भक्ति लोचावसाने च सिद्धभक्तिविरागदा ||२३|| अर्थ - दीक्षा ग्रहण करते समय और केशलोंच करते समय सिद्धभक्ति और योगभवि पढ़नी चाहिए तथा केशशीष करने के उत्पन्न करनेवाली सिद्धभक्ति पढ़नी चाहिए ॥६२३॥ पारगा के दिन आचार्य भक्ति पढ़नी चाहियेश्री सिद्धयोग भक्तोकृत्प्रत्यास्थानमूजितम् । गृहीत्वाचार्यभक्तिश्चकर्तव्या पारणानि ।। ६२४ ॥ अर्थ - सिद्धभक्ति और योगभक्ति पढ़कर उत्तम प्रत्याख्यान ग्रहण करना चाहिए और पारणा के दिन आचार्यभक्ति पढ़नी चाहिए ।। २४ ।। प्रत्याख्यान का त्याग- सिद्धाः प्रत्याख्यानं विमोचयेत् । मध्याह्न संयमी वस्तृगेगस्थित विये ।। ६२५ ।। अर्थ- फिर संयमियों को आत्म कल्याणार्थ शरीर की स्थिति के लिए दाता के घर मध्याह्न के समय सिद्धभक्ति पढ़कर प्रत्याख्यानका त्याग करना चाहिए । ।।२५।। स्वाध्याय के आदि में तथा अंत में किस भक्ति का पाठ करें श्राचार्य भक्तिविधाय स्वाध्याय ऊर्मितः । प्रायो निष्ठापने तस्यभूतभक्तिभवेत्सताम् ॥ अर्थ- सज्जन पुरुषों को श्रुतभक्ति और आचार्यभक्ति पढ़कर श्रेष्ठ स्वाध्याय ग्रहण करना चाहिए और समाप्त करते समय श्रुतभक्ति पढ़नी चाहिये ॥ ६२६ ॥ .
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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