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________________ मूलाचार प्रदीप ] (११८ ) [ तृतीय अधिकार करना शुभ अशुभ नामों में रागषका त्याग कर देना उसको गणधर देवोंने सज्जनोंके नाम सामायिक कहा है ।।७१६-७२०।। स्थापना सामायिक का स्वरूपस्थापनाः प्रतिमा विव्यरूपा मनोक्षशर्मयाः । मेत्रानिष्ठाः कुरूपाश्च वेतालाकृतिघारिणीः । विलोक्य क्रियते राग द्वेषदो यतिसर्जनम् । शान्ति शर्मदं स्थापनासामायिकमेयतत् ॥७२२।। अर्थ-स्थापना निक्षेप के द्वारा स्थापित मन और इन्द्रियों को सुख देनेवाली प्रतिमाओं को देखकर राग नहीं करना तथा नेत्रोंको अनिष्ट, कुरूप, वेतालको आकृति के समान प्रतिमाओंको देखकर द्वेष नहीं करना शांति और कल्याण करनेवाला स्थापना सामायिक है ॥७२१-७२२।। द्रव्य सामायिक का स्वरूपसुवर्णरूप्यमाणिक्यामुक्ताफलांशुकादिषु । ब्रव्येषु भोगवस्त्रायो मुक्तिकाकंटकाविषु ॥७२३॥ रागद्वेषाविकांस्त्यपत्वा सतां यत्समदर्शनम् । वग्यसामायिक तरच प्रव्योत्पलाघनाशनम् । ७२४।। अर्थ-सोना, चांदी, माणिक, मोती, वस्त्र प्रादि भोगोपभोग के पदार्थों में अथवा मिट्टी कांटे प्रावि पदार्थों में रागद्वेष का त्याग कर देना तथा समस्त पदार्थों में समता धारण कर समान परिणाम रखना द्रव्य सामायिक है। यह सामायिक द्रव्यों से उत्पन्न हुए समस्त पापों को नाश करनेवाला है ॥७२३-७२४॥ क्षेत्र सामायिक का स्वरूपसौधारामनदीकूलपुरादीनि शुभानि च । क्षेत्राणि वाघ वीभत्सकंटकाधाधितान्यपि ३७२५।। प्रशुभान्याप्य रागद्वेषयोरभाव एव यः । क्षेत्रसमायिक सदि क्षेत्रमानवरोधकम् ॥७२॥ अर्थ-राजभवन, बगीचा, नदी का किनारा और नगर आदि शुभ क्षेत्रों को पाकर राग नहीं करना लथा कांटों से भरे हुए कंकड़ पत्थरों से भरे हुए दावाग्नि से जले हुए वन आदि अशुभ क्षेत्रको पाकर द्वेष नहीं करना क्षेत्र सामायिक है। यह क्षेत्र सामायिक क्षेत्रसे उत्पन्न होनेवाले आस्रव को रोकने वाला है ॥७२५-७२६।। काल सामायिक का स्वरूपसाम्यरूपान् शुभान कालान् शोतोष्णादिव्युतान् क्वचित् । षड्ऋतूश्च तमः पक्षशीतोष्णाचाल कुदुःखवान् ॥७२७॥ संस्पर्शः स्यज्यते यदि रागढषयं बुधैः। कालसामायिक कालकृतदोषाविहंत यत् ॥७२॥
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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