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________________ मूलाचार प्रदीप ( ११७ ) [ तृतीय अधिकार लिये सिंहके समान है। इसलिये मोक्षकी इच्छा करनेवाले पुरुषों को अपने यम और नियमों के समूह से इस पंचेन्द्रियों के निरोध को अवश्य धारण करना चाहिये ।।७१३।। ६ अावश्यक मूलगुणों का वर्णन-- अथ मूलगुणान् वक्ष्ये षडावश्यकसंज्ञकाम् । धर्म शुरलोसमध्यानहेतून सिद्धांतजान सत्ताम् ॥ अर्थ----अब आगे छह आवश्यक नामके भूलगुणों को कहते हैं । ये छह प्रावश्यक धर्म और शुक्ल नामके उत्तम ध्यान के कारण हैं और सिद्धांत शास्त्रों में कहे हुए हैं ॥७१४॥ ६ आवश्यकों के नामसामायिकं स्तवो पंदना प्रतिक्रमणं ततः । प्रत्मात्यानं तनूरसर्गः इमान्यावश्यकानि षट् ॥७१५।। __ अर्थ-सामायिक स्तव वंदना प्रतिक्रमण प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग ये छह मुनियों के आवश्यक कहलाते हैं ॥७५५।। (१) सामायिक आवश्यक का स्वरूपजीविते मरणे लाभाला वषवि सन्मणौ। संयोमे विप्रयोगे च रिपो बंधी खलाखले ॥७१६॥ तृणे च कांचने सौख्ये दुखे वस्ती शुभाशुभे । क्रियते समभावो य स्तद्धि सामापिकं मतम् ॥ अर्थ--जीने मरने में, लाभ अलाभ में, पत्थर मणि में, संयोग वियोग में, शत्रु बंधु में, दुष्ट सज्जन में, तृण सुवर्ण में, सुख दुःख में और शुभ अशुभ पदार्थों में समान परिणाम रखना सामायिक कहलाता है ।।७१६-७१७।। सामायिक के ६ भेदनामाप स्थापना प्रव्यं क्षेत्र कालः शुभाश्रितः। भाव सामाषिकोत्रषो निक्षेपः षड्विधो भवेत् ।। अर्थ-यह सामायिक नाम, स्थापना, प्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के मेव से छह प्रकार है ।।७१८॥ माम सामायिक का स्वरूप--- कर वीभत्सनामा यशुभानि द्वषतानि च। रागकणि मामानि मनोहरशुभानि पै ॥७१६॥ श्रुत्वा मद्वर्जनं राग द्वषादीनां विधीयते । नाम सामायिकालयं तस्सता प्रोक्तं गणाधिपः ।।७२०।। अर्थ-वष उत्पन्न करनेवाले कर वीभत्स और अशुभ नामों को सुनकर द्वेष नहीं करना तथा राग उत्पन्न करनेवाले मनोहर और शुभ नामों को सुनकर राग नहीं
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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