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________________ मूलाचार प्रदीप (११५) [ तृतीय अधिकार रत्नत्रय का अपहरण करनेवाले इन्द्रियों को नहीं जीत सकते उनकी दीक्षा भी व्यर्थ हैगृहस्त्रोभ्यादिकां त्यक्त्वा दीक्षात्र गृह्यते बुधैः । जयाप स्वाक्षशत्रूणां रत्नत्रयापहारिणाम् ।। निजितनारीणां यथा दीक्षातपः फलम् । व्यर्थो गृह परित्यागो इहामुत्र मुखं न च ॥७०६॥ प्रा.-तुद्धिमान् को कान सम को अपहरण पारनेवाले इन्द्रियरूपी शत्रुओं को जीतने के लिये ही घर स्त्री और धन आदि का त्याग कर वीक्षा ग्रहण करते हैं । इसलिये जो पुरुष इन्द्रियरूपी शत्रुओंको नहीं जीत सकते उनको दीक्षा और तपश्चरण वा तपश्चरणका फल प्रादि सब व्यर्थ है, तथा उनका घरका त्याग भी व्यर्थ है। ऐसे पुरुषों को इस लोक और परलोक दोनों लोकोंमें सुख नहीं मिल सकता ॥७०५-७०६।। __इन्द्रियों को जीतना ही परम लप हैयतोक्षविजयः पुसा तपः स्यात्परमं भुवि । प्रतः कि सत्तपस्तेषां येषां भो नामनिर्जयः ॥७०।। अर्थ-इंद्रियों को दमन करना जीतना इस संसार में मनुष्यों का परम तप कहलाता है इसलिये कहना चाहिये कि जो इन्द्रियों को नहीं जीत सकते हैं उनके श्रेष्ठ तप कैसे हो सकता है अर्थात् कभी नहीं हो सकता ॥७०७॥ इन्द्रिय विजेताओं को ही ऋद्धियां एवं सिद्धियां प्राप्त होती हैंकिमत्र बहनोलेम तेषां सिद्धिर्महात्मनाम् । ऋद्धयः सुसपालि स्युजिता यैःस्वाक्षरात्रवः ॥७०।। अर्थ- बहुत कहने से क्या थोड़े से में इतना समझ लेना चाहिये कि जिन्होंने अपने इन्द्रियरूपी शत्रुओं को जीत लिया है उन्हीं महात्माओंके ऋद्धियां तपश्चरण और सिद्धियां प्राप्त होती हैं ।।७०८।। इन्द्रिय लंपटता के कारण परलोक में दुर्गति-- प्रनिमिताक्ष होनाना नेह लोकोपकीर्तितः। परलोको न लोपटयात् किंतु दुर्गतिरेव च ॥७०६॥ अर्थ- अपनी इन्द्रियों को न जीतने के कारण जो होन हो रहे हैं उनके न तो इस लोकमें कीर्ति होती है और न परलोक ही उनका सुधरता है किंतु इन्द्रिय लंपटता होने के कारण परलोक में उनको दुर्गति ही होती है ॥७०६॥ इंद्रिय सुख और मोक्ष दोनों एक साथ प्राप्त नहीं किए जा सकतेयथावगमने स्याता पंथानी व्रौ न वेहिनाम् । तथामातुल मोसो च वृथानम्मतिकाक्षिणाम् ।। अर्थ-जिस प्रकार चलते समय मनुष्य भिन्न-भिन्न दो मार्गों में ही नहीं चल
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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