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________________ मुलाचार प्रदीप] [ नृतीय अधिकार शब्दों को सुनना चाहिये । तथा परम प्रयत्न के साथ समस्त सुखों का निधान और समस्त सिद्धांत का कारण ऐसा श्रोत्र इन्द्रिय का निरोध करना चाहिये ।।६३६॥ घाणेन्द्रिय निरोध का स्वरूप--- निसर्गवासितानां च चेतनावेतमात्मनाम् । द्रध्यायीनां सुसौरम्याणां रागावि विधायिनाम् ॥ गंधो न प्रायते योन रागादिभिविरागिभिः । न घेण वेसराणा स प्राणरोधो जिनमतः ॥६३८।। अर्थ-बोलराणी पुरुष स्वभाव से सुगंधित चेतन वा अचेतन सुगंधित और राग बढ़ाने वाले द्रव्योंको राग पूर्वक कभी नहीं सूंघते हैं इसोप्रकार दुर्गध युक्त पदार्थों को द्वष पूर्वक नहीं सूघते हैं उसको भगवान जिनेन्द्रदेव घ्राण इन्द्रिय का निरोष कहते हैं ।।६३७-६३८।। भोजन करते समय भी सुगंधित पदार्थों को नहीं सूचना चाहियेपुष्पक' रकस्तूरी श्रीखण्याचा अनेकशः । सुगंधयः शुभद्रम्या नातव्या नाक्ष निजितः ॥६३६।। अर्थ-इन्द्रियों को जीतने वाले संयमियों को पुष्प कपूर कस्तुरी चंदन आदि अनेक प्रकार के सुगंधित और शुभ द्रव्य कभी नहीं घने चाहिये ।।६३६॥ घाणेन्द्रिय को प्रिय लगने वाले पदार्थों का निधघृतपक्वान्नपानाया घ्राणेन्द्रियसुखप्रदाः। भोजनावसरे जातु न प्राणीया पतीश्वरः ॥६४०॥ अर्थ-मुनिराजों को भोजन के समय में भी प्राण इन्द्रिय को सुख देनेवाले घी में पके हुए अम्ल पान आदि पदार्थ भी कभी नहीं सूघने चाहिये ॥६४०।। दुर्गंधमय पदार्थों को सूधकर द्वेष नहीं करना चाहिये - दुर्ग वा समानाय नषः कार्यों न संयतः । पूतिगंधो यतः काय: स्वस्पैच विद्यतेऽशुभः ॥६४१।। अर्थ-मुनियोंको दुर्गधमय पदार्थों को सूघकर द्वष भी नहीं करना चाहिये । क्योंकि अपना शरीर ही अत्यंत शुभ और अत्यंत दुर्गंधमय है । ६४१॥ घाणेन्द्रिय को प्रिय लगने वाले पदार्थों के सेवन से कमबंध नहीं होतामत्वेति ये न कुर्वन्ति सुगंधेतर वस्तुषु । रागद्वषो न तेषां न कर्मबंधोत्रताकृतः 11६४२।। अर्थ-यही समझ कर जो मुनि सुगंधित वा दुर्गंध युक्त पदार्थों में रामद्वेष नहीं करते उनके प्राण इन्द्रिय से उत्पन्न होनेवाला कर्म बंध कभी नहीं होता ।।६४२।। सुगंध को राग पूर्वक तथा दुगंध को द्वेष पूर्वक त्याग का उपदेशरागवषेण गहन्ति गंधी येत्र समेतरौ । भवरापानं तेषां पाप दुःखं 5 दुर्गतौ ।।६४३॥
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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