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________________ मूलाचार प्रदोप] ( ६८ ) [द्वितीय अधिकार (६) दायक दूषणसूतो गोंडी सवा रोगी, मृतकश्त्र नपुंसकः । पिशाचो नग्न एवाज, उच्चारः पतितस्ततः ।। बातोंगो रुधिरास्तांगः, वेश्यावासी समाजिका । प्रतिमालातिवद्धा, रामागाभ्यंगणकारिणी ।। उत्सृष्टा गभिरणी चांधलिका, झंतरितांगमा । उपविष्टा तथोरवस्था, नोधप्रदेशसंस्थिता ।। एवंविषो मरः स्त्री था, यदि वानं स्वाति च । तदा दायक कोषः स्यान्मुनेस्लरसेपिनी शुभः ।। अर्थ-जो बच्चों को खिलाने वाला हो; जो मद्यपान का लंपटी हो; रोगों हो; जो किसी मृतक के साथ श्मशान में जाकर आया हो; अथवा जिसके घर कोई मर गया हो; जो नपुसक हो; जिसे बात की व्याधि हो गई हो : जो वस्त्र न पहने हो; नग्न हो; जो मल मूत्र करके प्राया हो; जो मूलित हो; पतित हो; जो वमन करके आया हो, जिसके शो 'ए मधिर ना हो. तो मेगा हो . हामी हो; अजिका हो या लाल वस्त्र पहनने वाली हो, जो स्नान, उबटन करने वाली हो, जो अत्यंत बालक, स्त्री या मुग्धा हो, जो अत्यन्त वृद्धा हो; जो खाकर आई हो, जो ५ महिने से अधिक गभिरणी हो; अंधी हो; दीवाल के बाहर रहनेवाली हो, जो बैठो हो; किमी ऊंची जगह पर बैठी हो; ऐसी चाहे कोई स्त्री हो या पुरुष हो; ऐसा पुरुष या स्त्री दान देवे और मुनि लेवे तो उनके (६) 'दायक' दोष उत्पन्न होता है ।।४३६-४४२।। पुनः दायक दोषवन्ही संधुक्षणं प्रज्वालनमुकर्षण लथा । प्रछावन व विध्यापन, नितिं छ घनम् ॥४४॥ इत्याग्निकार्य च, कृत्वारमं हि या गता । तस्या हस्तेन न ग्राह्य, वानं वायफदोषदम् ।।४४४ ।। अर्थ-जो स्त्री या पुरुष अग्निको जलाकर पाया हो; अग्नि फुककर आया हो; अग्नि में अधिक लकड़ी डालकर पाया हो; अग्निको भस्म से दबाकर पाया हो या बुझाकर आया हो या अग्निसे लकड़ियों को अलग करके प्राया हो अथवा अग्निको मिट्टी प्रादि से रगड़कर आया हो, इसप्रकार जो अग्निके कार्य को करके प्राया हो और दान देने के प्रारंभ में ही आ गया हो उसके हाथ से वान नहीं लेना चाहिये । क्योंकि उसमें भी दायक दोष उत्पन्न होता है ।।४४३-४४४॥ पुन': दायक दोषलेपन मार्जनं स्नानादिक कर्म विधाय च । स्तनपानं पिबन्त बालकं निक्षिप्य माऽऽ गतः ||४४५॥ इत्याच पर सावण, कर्म हस्थात्र बातृभिः । दानं यद्दीयते सर्यो, दोषः सदायकाभियः ॥४४६॥
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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