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________________ मूलाचार प्रदीप ] ( ६५ ) { द्वितीय अधिकार अर्थ - - इसीप्रकार राशियाना नामके नगर में किसी अन्य साधु ने लोगों को अपना लोभ दिखलाकर भिक्षा उत्पन्न की थी ||४२१|| लगी मुनियों की कथा का सार--- कोभाविकारिणामेषां चतुरा द्रव्य लिंगनाम् । यत्रो हि कमाज्ञेयाः प्रसिद्धा श्री जिनागमे ।। अर्थ- कोधादि चारों कषायको प्रगट करनेवाले इन चारों द्वलिंगी मुनियों की चारों प्रसिद्ध कयाये श्री जिनागम से जाम लेनी चाहिये ।।४२२॥ ना (११) पूर्वसंस्तुति दोष ★यते यथोदान प्रहणात् पूजितम् । वातुर सुवानाथ, सदोष: पूर्वसंस्तुतिः ॥४२३॥ अर्थ - जो मुनि दान ग्रहण करने के पहले श्रेष्ठ दान देने के हो अभिप्राय से उसी बात के सामने उसका श्रेष्ठ यश वर्णन करता है उसके ( ११ ) पूर्वसंस्तुति नाम का दोष प्रगट होता है ।।४२३ ।। (१२) पश्चात्संस्तुति दीप- गृहीत्वा पुरतोदानं पश्चाद्दानादिजान् गुणान् । वातुः स्तीति गिराय यः स पश्चात् संस्तुति दोष भाक् ॥ ४२४ || अर्थ- जो मुनि दान लेकर पीछे से अपनी वाणी के द्वारा, दाता के दिये हुए उस बानके गुणों की प्रशंसा करता है उसके 'पश्चात् संस्तुति' नामका दोष लगता है ।। ४२४ ।। (१३) विद्या नामका दोष --- विद्यां साधयितुं सारं ते दास्यामीति यो मुनिः । भ्राशयोत्पादयेद् भिक्षां, विद्यादोषोऽय तस्य च ॥ अर्थ---जो मुनि दासा को यह आशा दिलाता है कि “मैं तुके सिद्ध करने के लिये एक अच्छी विद्या दूंगा" इसप्रकार माशा दिलाकर जो भिक्षा उत्पन्न करता है उसके (१३) विद्या नामका दोष लगता है ।।४२५ ॥ (१४) मंत्र नामका --- गृहिणां सिद्धसन्मंत्र, दानाशाकरणादिना । उत्पाद्य गृह्यतेन यन्मंत्रघोषः सकष्यते ।। ४२६ । अर्थ- जो मुनि किसी गृहस्थ को किसी सिद्ध किये हुये मंत्रको देनेकी श्राशा दिलाकर आहार ग्रहण करता है उसके (१४) 'मंत्र' नामका दोष लगता है ।।४२६ ॥
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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