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________________ ...और शून्य में यह कौन आलोक पुरुष दिखाई पड़ रहा है, जिसके चरणों में जा-जाकर ये अन्तहीन लहरें निर्वाण पा रही हैं! एकाएक अंजना ने शुन्य में हाथ फैला दिये। अपने हो गिरनों की कार से वह चौंक उठी। वसन्तमाला ने पीछे से उसे थाम लिया। परिचयहीन, भटकी चितवन से वह वसन्त को देख उठी। फिर एक अपूर्व संवेदन की मर्म-पीड़ा उन आँखों की कजरारी कोरों में भर आयी। देखकर वसन्त नीरव हो गयी। चित्त उसका स्ट हो गया और चाहकर भी बोल नहीं फूट पाया। पूर्ण चेत आते ही अंजना को रोमांच हो आया, कपोलों पर पसीना झलक उठा। प्रगाढ़ लज्जा से मानो वह अपने ही में मुंदी जा रही है कि अगले ही क्षण वह परवश होकर लुढ़क पड़ी-बसन्तमाला के वक्ष पर। ____ “अंजन, मुझसे ही लाज आ रही है आज तुझे?" "जीजी...बहुत दिनों का मूला सम्बोधन आज फिर होठों पर आ गया है-अनायास, क्षमा कर देना, जीजी। पर आज तम बड़ी ही बड़ी लग रही हो। तुम्हें छोड़कर आज कहीं शरण नहीं है-इसी से कह रही हूँ। बीच धारा में मुझे असहाय छोड़कर चली मत जाना। अपनी अंजना का पागलपन तो तुम सदा से जानती हो-फिर क्या आज भी क्षमा नहीं कर दोगी, जीजी?" अंजना की झुकी हुई पलक पर बिखर आयी हल्की-सी केश-लट को उँगली से हटाते हुए वसन्त ने कहा "इसी से तो कह रही हूँ अंजन, कि अपनी चिर दिन की उस जीजी से भी यों लाज करेगी?" "तुमसे नहीं जीजी, अपनी ही लाज से भरी जा रही हूँ। अपनी ही हीनता पर मन करुणा और अनुताप से भरा आ रहा है। देने को क्या है मेरे पास, जीजी, तुम्हीं बताओ न?" "छिः मेरी पगली अंजन..." कहते-कहते वसन्त का गला भी हर्ष के पुलक से भर आया। और भी दुलार से अंजना के शिथिल हो पड़े शरीर को उसने वक्ष से चाँप लिया। भसच कह रही हूँ जीजी, मेरा मन मेरे वश में नहीं है। और रूप? यह तो टूट-टूटकर बिखरा जा रहा है; धूल-मिट्टी हुआ जा रहा है! श्रृंगार-सज्जा के छद्म-बन्धन में बाँधकर इसे, उन चरणों पर चढ़ाने को कहती हो जीजी? क्या क्षणों के इस छल से उन चरणों को पाया जा सकेगा? और यदि पा भी गयो-तो के दिन रख सकूँगी?" "कैसी बातें करती है, अंजनः जित अंजना के दिव्य रूप को पाने के लिए, स्वर्ग के देवता पयलोक में जन्म पाने को तरस जाएँ, उसी अंजना के हृदय का यह अमृत आज उसकी समर्पण की अंजुलियों में भर आया है! देखू, वह कौन-सा 44 :: मुक्तिदूत
SR No.090287
Book TitleMuktidoot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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