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________________ का परिचय पाओ, जिस पर खड़े होकर, असीम को पाने को तुम्हारी उत्कण्ठाएँ तीव्र हो उठी हैं।" साँझ घनी हो गयी है। मानसरोवर के सुदूर जल-क्षितिज पर, चाँद के सुनहले बिम्ब का उदय हो रहा हैं। उस विशाल जल-विस्तार पर हंस-चुगलों का विरल क्रीड़ा-रव रह-रहकर सुनाई पड़ता है। देवदारुविन और फूल-घाटियों की सुगन्ध लेकर वासन्ती वायु हौले-हौले बह रही है। चिर दिन का सखा प्रहस्त कमार के सदा के सरल मन में अनायास आ गयी इस उलझन को समझा रहा था। तीन दिन से कुमार की विकलता को वह देख रहा है। भीतर से पवन जितना ही अधिक तरल, कोमल और चंचल हो पड़ा है, बाहर से वह उतना ही अधिक कठोर, स्थिर और विमुख दिखाई पड़ रहा है। प्रहस्त ने इस उलझन को सुलझाने की युक्ति पहले ही खोज निकाली यो । केवल एक बार अवसर पाकर, वह कुमार के मन की टोह-भर पा लेना चाहता था। आज साँझ वह प्रसंग आ उपस्थित हुआ। प्रहस्त ने सोच लिया कि इस सुयोग का लाभ उठा लेना है। सारा आयोजन वह पहले ही कर चुका था। बिना किसी वितर्क के मौन-मौन ही कुमार प्रहस्त के अनुगामी हुए। थोड़ी ही देर में यान पर चढ़कर, आकाश-मार्ग से प्रहस्त और पक्नंजय विद्याधर-राज के महल की अटारी पर जा उतरे। एक झरोखे में जहाँ माणिक-मुक्ताओं की झालरें लटको थीं, उसी की ओट में मित्र । । सामने जो दृष्टि पड़ी तो पक्नंजय पता पूछने की बात भूल गये। अन्तर्मुहर्त मात्र में मानो दूसरे ही लोक में आ गये हैं। सौन्दर्य के किस अज्ञात सरोवर में खिला है यह रूप का कमल! गन्ध, राग, सुषमा की लहरों से वातावरण चंचल है। चारों ओर जैसे सौन्दर्य के भँवर पड़ रहे हैं, दृष्टि ठहर नहीं पाती। सारी जिज्ञासाएँ, सारे प्रश्न, सारी उत्कण्ठाएँ मानो यहाँ आकर निःशेष हो गयी हैं। सम्मोहन के उस लोक में सारी रागिणियों, बस उसी एक संगीत में मूच्छित हो गयी हैं। कुमार खो गया है कि पा गया है-कौन जाने पर जो था सो अब वह नहीं है। सखियों से घिरी अंजना जानु मोड़कर, एक हाथ के बल बैठी है। अनेक पावत्य फूलों की वर्ण-वर्ण विचित्र मालाएं आस-पास बिखरी हैं। उनसे क्रीड़ा करतो हुई वे सब सखियों परस्पर लीला-विनोद कर रही हैं। अंजना को उस कुन्दोचल देह पर, बड़े ही प्रद, हत्के रत्नों के बिरल आभरण हैं, और गले में नीप कुसुमों की माला। सूक्ष्म दुकूल उस देहयष्टि की तरल सुषमा में लीन हो गया है। सारे वस्त्राभरणों में भी सौन्दर्य का वह पद्म, अनावृत है-अपनी ही शोभा में क्षण-क्षण नव-नवीन। चंचल हास-परिहास के बाद अभी कुछ ऐसा प्रकरण आ गया है कि अंजना कुछ गम्भीर हो गयी है। 30 :: मुक्तिदूत
SR No.090287
Book TitleMuktidoot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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