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________________ 'मूक माटी' को सन्त कांवे ने चार खण्डों में विभक्त किया हैं : संकर नहीं : वर्ण-लाभ शब्द सो बोध नहीं बोध सो शोध नहीं : खण्ड: 1 खण्ड : ५ खण्ड: 3 पुण्य का पालन पाप-प्रक्षालन खण्ड: 4 अग्नि की परीक्षा चाँदी-सी राख : पहला खण्ड माटी को उस प्राथमिक दशा के परिशोधन की प्रक्रिया को व्यक्त करता है जहाँ वह पिण्ड रूप में कंकर-कणों से मिली-जुली अवस्था में हैं। कुम्भकार की कल्पना में माटी का मंगल-घट अवतरित हुआ है। कुम्भकार माटी को मंगल-घट का जो सार्थक रूप देना चाहता है उसके लिए पहले यह आवश्यक है कि माटी को खोट कर उसे कूट छान कर उसमें से कंकरों को हटा दिया जाए। माडी जो अभी वर्ण-संकर है, क्योंकि उसकी प्रकृति के विपरीत नेमेल तस्य कंकर उसमें आ मिले. हैं। वह अपना मौलिक वर्णलाभ तभी प्राप्त करेगी जब वह मृदु मांटी के रूप में अपनी शुद्ध दशा प्राप्त करें : इस प्रसंग में वर्ण का आशय / न ही रंग से है / चरन् / चाल-चरण, ढंग से है I यानी ! जिसे अपनाया है। उस / जिसने अपनाया है उसके अनुरूप अपने गुण-धर्म"रुप स्वरूप को परिवर्तित करना होगा बरना वर्ण संकर दोष को वरना होगा !... केवल / वर्ण-रंग की अपेक्षा ही अंग से गाय का क्षीर भी धवल है / आक का क्षीर भी धवल है दोनों ऊपर से विमल हैं। परन्तु परस्पर उन्हें मिलाते ही / विकार उत्पन्न होता है, क्षीर फट जाता है / पीर बन जाता है वह नीर का क्षीर बनना ही / वर्ण-लाभ है, वरदान है। नौ
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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