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________________ : . विषाक्त-कंटक वाली ऊपर उठी पंछ हैं जिनकी ऐसे मांस-भक्षी महा-मगरमच्छ भोजन-गवेषणा में रत परिवार के आस-पास सिर उठाने लगे हैं। और भी अन्य क्रूरवृत्ति वाले विविध जातीय जलीय जन्तु क्षुब्ध दिख रहे क्षुधा के कारण, तथापि परिवार की शान्त मुद्रा देख :: शो का नूतन जोग करमाः . : ... : जो मूल-धर्म है उनका भूल-से गये हैं, उनकी वृत्ति में आमूल-चूल परिवर्तन-सा आ गया है, भोजन का प्रयोजन ही छूट गया। और जैसे भगवान को देखते ही भस्त के मन में भजन का भाव फूट गया है हेय-उपादेय का बोध, क्षीर-नीर-विवेक, कर्तव्य की ओर मुड़न यूँ भाँति-भाँति, जागृति आ गई जतचरों के जीवन में। मूक माटी :: 415
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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