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________________ कॉटों को भी नहीं काटा हमने काँटों को भी मृदु आलिंगन दिये हैं........ क्योंकि वह शोषित हैं । डाल-डाल में भरे रस- पराग को चूसा फूल ने यश को भी लूटा फूल ने फल यह निकला कि सूख सूख कर शेष सच काँटे जो रह गये ! एक बात और कहनी है हमें कि पदवाले ही पदोपलब्धि हेतु पर को पद - दलित करते हैं, पाप- पाखण्ड करते हैं। 434 मुफ़ मारी प्रभु से प्रार्थना है कि अपद ही बने रहें हम ! जितने भी पद हैं वह विपदाओं के आस्पद हैं, पद - लिप्सा का विषघर वह भविष्य में भी हमें ना सूघे बस यही भावना है, विभो !" अपों के मुख से पदों की, पद वालों की परिणति-पद्धति सुन कर परिवार स्तम्भित हुआ । चतुष्पदी गज-यूथ भी स्पन्दन- शून्य हुआ यन्त्रवत् और सबके पद हिम-सम जम गये।
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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