SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 454
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आतंकवाद का पल शनैः-शनैः निष्क्रिय होता जा रहा है। दल-दल में फंसा बलशाली गज-सम ! धरती को चीरती जाती ढलान में लुढ़कती नदी पर्वत से कब बोलती है ? बस यही स्थिते है आतंकवाद की और घनी-वनी जा छुप गया वह । "संहार की बात मत करो, संघर्ष करते जाओ ! .. हार की बात मत करो...... ... . उत्कर्ष करते जाओ ! और "सुनो ! घातक-घायल डाल पर रसाल-फल लगता नहीं, लग भी जाय पकता नहीं, और काल पा कर पक भी जाय तो भोक्ता को स्वाद नहीं आएगा "उस रसाल का ! विकृत-परिसर जो रहा !" यूँ कहता हुआ, सर्प-समाज में से एक यूगल नाग और नागिन, "हमें नाग और नागिन ना गिन, हे वरभागिन् : 482 :: मूक माटी
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy