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________________ धीरे धीरे शारी की समझदारी बहुतों को समझ में आने लगी है, और झारीren जी सबत होता जा रहा है, अनायास । 421: मूक पाटी चन्द चमक से उछलती हुई चांदी की कलश- कलशियाँ, चालाक चालकों से छली बड़ी-छोटी चमचियाँ, तामसता से तने हुए तमतमाते ताम्र-बर्तन, राजसता में राजी रपे पर - प्यार से पले और भी भ्रम में पड़े प्यासे प्याले प्यालियाँ" जिन्हें, पक्षपात का सर्प सैंधा था ऐसे लगभग सभी भाजन स्वर्ण-पक्ष को ठुकरा कर शारी के चरणों में झुकते हैं। ली, अब झारी कहती हैं : " हे स्वर्ण कलश ! जो माँ सत्ता की ओर बढ़ रहा है समता की सीढ़ियाँ चढ़ रहा हैं उसकी दृष्टि में सोने की गिट्टी और मिट्टी एक है और है ऐसा ही तत्व !
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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