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________________ केशर बिखेरते पुखराज, पारदर्शक स्फटिक, अनल-सम लाल हो कर भी शान्त किरणों के पुंज माणिक इन सबसे केवल शीतलता ही नहीं मिलती हमें मधुमेय खास श्वास य आदि-आदि राज-रोगों का उपशमन भी होता है इनसे, और, प्रायः जीवन पर ग्रहों का प्रतिकूल प्रभाव भी नहीं पड़ता, किन्तु आज । काँच - कचरे को ही सम्मान मिल रहा है । 112: मूकमाटी - - NDT 2533 स्वर्ण के कुम्भ कलश घालियाँ रजत के लोटे प्याले प्यालियाँ, जलीय दोषों के वारक ताम्र के घट-घढ़ हँडियाँ बड़ी-बड़ी परात भगोनियाँ आदि-आदि मौलिक बर्तनों को बेच-बेच कर जघन्य सदोष बर्तनों को मोल ले रहे हैं धनी, धीमान तक । आज बाजार में आदर के साथ - बात-बात पर इस्पात पर ही सव का दृष्टिपात है । जेल में भी अपराधी के हाथों और पदों में इस्पात की ही हथकड़ियाँ और बेड़ियाँ होती हैं।
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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