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अवसर सरक चुका है अतीत के असीम बन में। मानता हूँ, कि सदा-सदा मे. ज्ञान ज्ञान में ही रहता, ज्ञेय ज्ञेय में ही, तथापि ज्ञान का जानना ही नहीं झंयाकार होना भी स्वभाव है, तो"इस ओर देखने में
हानि क्या थी? लगता है ज्ञेयों से भय लगता हो नामधारी सन्त के ज्ञान को, ऐसी स्थिति में निश्चित ही स्वभाव समता से विमुख हुआ जीवन अमरत्व की ओर नहीं समरत्व की ओर, मरण की ओर, लुढ़क रहा है।
और सुनी ! उच्च स्वर में केसर ने कहा : जीवन का, न यापन ही नयापन है और नैयापन !
इस भाँति, कुम्भ और अन्य पात्रों के बीच वाद-विवाद होता गया,
मूक माटी :: 31