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अन्याय मार्ग का अनुसरण करने वाले रावण जैसे शत्रुओं पर
रणांगण में कूद कर राम जैसे
श्रमशीनों का हाथ उठाना ही
कलियुग में सत्ग ला सकता है,
धरती पर यहीं पर
स्वर्ग को उतार सकता है।
करे सर्विद्यागर की खा
श्रम
ऐसे कर्म-मीन कंगाल के
लाल-लाल गाल को
पागल से पागल श्रृंगाल भी खाने की बात तो दूर उना भी नहीं चाहेगा ।"
रही,
362: भूक गारी
इस पर भी अभी
कलश का उबाल शान्त नहीं हुआ,
खदबद खबट
खिचड़ी का पकना वह
अक्किन्न चलता ही रहा
और
सन्त के नाम पर और आक्रोश !
"कौन कहता है वह
कि
आगत सन्त में समता थी श्री पक्षपात की मुर्ति वह,
समता का प्रदर्शन भी दश प्रतिशत नहीं रहा समता-दर्शन तो दूर | जिसकी दृष्टि में अभी