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________________ सेट चल रहा नगर के निकट उपवन है हैं I उपवन में नसियाजी है जिसका शिखर गगन चूमता है, शिखर का कलश चमक रहा है, अपनी स्वर्णिम कान्ति से कलश बता रहा है कि संसार की जितनी भी चमक-दमक है यह सब भ्रमित है, भ्रामक भी सत्पथ की गमक नहीं है 346 मूकमाटी रुक्क न सका रूदन, फूट-फूट कर रोने लगा पुण्य-प्रद पूज्य-पदों में लोटपोट होने लगा | नसियाजी में जिनबिम्ब है नयन मनोहर, नेमिनाथ का बिम्ब का दर्शन हुआ निज का भान हुआ तन रोमांचित हुआ हर्ष का गान हुआ । लोचन सजल हो गये पथ ओझल - सा हो गया पद बोझिल से हो गये रोका, पर एक बार और गुरु चरणों में सेठ ने प्रणिपात किया लौटने का उपक्रम हुआ, पर तन टूटने लगा । "गुरु चरणों की शरण तज कर यह आत्मा
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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