SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 354
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चार-पाँच अंजुलि जल-पान हुआ कुछ इक्षु-रस का सेवन, फिर जो कुछ मिलता गया बस, अविकल चलता गया । जब चाहे, मन चाहे नहीं बिना याचना, बिना कोई संकेत बस, पेट हो भूखा फिर कैसा भी हो भोजन रस-दार हो या रूखा-सूखा सब समान । एक बर्तन से दूसरे बर्तन में भोजन - पान का परिवर्तन होता है क्या उस समय कभी बर्तन में कोई परिवर्तन आता है ? न ही कोई बर्तन नर्तन करता है। न ही कोई बर्तन रुदन मचाता है धन्य धन्य है यह नर और यह नर-तन सब तनों में 'वर' -तन बीजारोपण से पूर्व जल के बहाव से कटी-पिटी छेद- छिद्र गर्त वाली धरती में कूड़ा-कचरा कंकर पत्थर डाल उसे समतली बनाता है कृषक । बस, इसी भाँति, दाता दान देता जाता 332 मूक माटी
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy