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________________ सुनो सुनो परस-रस- गन्ध रूप और शब्द ये जड़ के धर्म हैं जड़ के कर्म" । कृष्ण- नील-पीत आदिक जो भी वर्ण हों शुभ या अशुभकभी कहते नहीं, कि हमें लख लो तुम ! और 330 मूकमाटी सा. रे... प्र म प धनि जो भी स्वर हों शुभ या अशुभ कभी कहते नहीं, कि हमें सुन लो, तुम । इससे यही फलित हुआ, कि मोह और असाता के उदय में क्षुधा की वेदना होती है यह क्षुधा तृषा का सिद्धान्त है । मात्र इसका ज्ञात होना ही साधुता नहीं है, चरन् ज्ञान के साथ साम्य भी अनिवार्य है श्रमण का श्रृंगार ही समता - साम्य है...! इधर, प्रारम्भ हुआ दान का कार्य पात्र के कर- पात्र में प्रासुक पानी से; परन्तु यह क्या ! संकायक पात्र ने अपने पात्र को बन्द कर लिया कि
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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